(बहुत बार देखा हैं, आकाश का धरती पर झुकना ...सूरज का सागर में डूबना ... दूर खेतों में सूरज का फसलों में समाना .......कई बार दौड़ी हूँ ...दूर तक ...क्षितिज को पकड़ने के लिए........ फिर पता चला कि पृथ्वी और आकाश को जुदा करने वाली ये एक रेखा हैं ...... भ्रम हैं ....पर मेरे मन ने कभी इस बात को स्वीकार ही नहीं किया। मुझे लगता हैं ये सच हैं .......शायद रहस्यमयी या फिर अनसुलझा सच .......मेरे हिसाब से ये एक उम्मीद हैं ....जहाँ उम्मीद हैं वहां जिंदगी हैं ....आस हैं......सपने हैं, ख्वाहिशे हैं.........
ये सिर्फ मेरी कृतियों का ब्लॉग नहीं बल्कि मेरे ख्वाबो , ख्यालों ,ख्वाहिशों का घर हैं ....जहाँ सच और कल्पना का अनूठा संगम हैं ..... आइये मेरे साथ मिलकर प्रकृति के इस नज़ारे को नए तरीके से देखें।)
मौसम ने फिर अंगडाई ली ,
खिली - खिली धूप ने विदाई ली,
मेघो ने तान दी हैं चादर धरा पर,
झोंको ने घोली हैं मधुरता फिजा में
धरती, गगन के इस अद्भुत मिलन पर,
पंछियों ने नए गीत गए,
वृक्षों ने उत्साह में हिलोरे लगाये,
नदियाँ बलखा के उफनने लगी हैं...
उफक की मौजूदगी..
एक सवाल हैं..
या फिर कायनात की एक गहरी चाल हैं,
खैर ! जो भी हो ....
चीज तो ये बेमिसाल हैं।
नहीं मानती मैं क्षितिज के उस भ्रम को..
ज़माने ने झूठ बोलकर सदियों से छला हैं,
हकीकत तो ये हैं कि गगन हर बार,
बादल बनकर धरती से मिला हैं।
असल में ये दो प्रेमियों की अमर प्रेम कथा हैं...
जिन्होंने दुनिया की बिसात पर,
मोहरे बनकर,
अभी सिर्फ एक बाजी खेली हैं।
खेल के निशान अभी भी हैं कायनात में...
हाँ लोग क्षितिज कह कर बुला लिया करते हैं,
बाजी बिछी हैं, खेल अधूरा हैं,
न कोई शह ,न कोई मात...
ज़माना सदियों से फंसा हैं,
दूसरी चाल में,
प्रकृति बैठी हैं चुपचाप,
अगली चाल के इंतज़ार में . ........
खिली - खिली धूप ने विदाई ली,
मेघो ने तान दी हैं चादर धरा पर,
झोंको ने घोली हैं मधुरता फिजा में
धरती, गगन के इस अद्भुत मिलन पर,
पंछियों ने नए गीत गए,
वृक्षों ने उत्साह में हिलोरे लगाये,
नदियाँ बलखा के उफनने लगी हैं...
उफक की मौजूदगी..
एक सवाल हैं..
या फिर कायनात की एक गहरी चाल हैं,
खैर ! जो भी हो ....
चीज तो ये बेमिसाल हैं।
नहीं मानती मैं क्षितिज के उस भ्रम को..
ज़माने ने झूठ बोलकर सदियों से छला हैं,
हकीकत तो ये हैं कि गगन हर बार,
बादल बनकर धरती से मिला हैं।
असल में ये दो प्रेमियों की अमर प्रेम कथा हैं...
जिन्होंने दुनिया की बिसात पर,
मोहरे बनकर,
अभी सिर्फ एक बाजी खेली हैं।
खेल के निशान अभी भी हैं कायनात में...
हाँ लोग क्षितिज कह कर बुला लिया करते हैं,
बाजी बिछी हैं, खेल अधूरा हैं,
न कोई शह ,न कोई मात...
ज़माना सदियों से फंसा हैं,
दूसरी चाल में,
प्रकृति बैठी हैं चुपचाप,
अगली चाल के इंतज़ार में . ........
22 comments:
KAASH SABHI KE JIWAN MEIN HAR RISHTE KA MILAN AISA HOTA.
BAHUT KHUB
MUBARAK
क्षितिज पृथ्वी और आकाश को जोड़ने वाली रेखा का नाम है...मुझे ऐसा लगता है.
बहुत सुन्दर हर उम्मीद यूँ ही कायम रहे तो अच्छा है ...क्षितिज भी एक भुलावा है पर कई ख्याल कई रंग दे जाता है आशा के उम्मीद के .सुन्दर रचना
हर बार प्रकृति को तुम्हारी रचनाओं के ज़रिये एक नए नज़रिए से देखना बहुत अच्चा लगता है... इस बार भी हमेशा की तरह एक अनूठी रचना... तुम्हारी ये कल्पना की उड़ान कभी ख़त्म न हो ... खूब लिखो, अच्छा लिखो...
apni anubhitiyon ko bahut sundar rup main vyakt kiya hai aapne. badhayi
bahut sunder abhivyakti. chitron ka samanjasya netron ko sukh dete hain.
badhai
man khil khil gaya
waah
waah
waah waah!
aapne jo hakikat mana,uspe main kurbaan....
waah! kya sundar rachna hai.............
shabd bhi aise maalom hote hain jaise aapse nahi is kaynaat se nikle hon....
ye prakiriti in shabdon ko janm de rahi hai....
aapka ehsaas bahut hi sundar hai......
अक्षय-मन
सागर से मिलने निकली नदिया सी बहती हुई कविता, बहुत अच्छी लगी!
बहुत सुन्दर रचना
I mean i like it very very much !!
नहीं मानती मैं..... बादल बनकर धरती से मिला है
सुंदर..बेहद जानदार लगीं आपकी ये पंक्तियाँ।
बहुत पहले एक कविता में दो लाइन लिखी थी
वही कहना चाहता हूँ
दो किनारे हैं हम तुम समझता हूँ मैं
दूर नज़रों के भ्रम से मिला दीजिये
वीनस केसरी
जीवन को आपने सीधे, सरल शब्दों में प्रभावशाली तरीके से काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है । आपकी कविता का कथ्य, शिल्प, भाव और विचार सभी प्रभावित करते हैं। सूक्ष्म संवेदना को आपने बडी बारीकी से रेखांकित किया है । बधाई ।-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
प्रकृती मे मिलन के इतने बिम्ब है कि हर बिम्ब पर ढेरों कविताये लिखी जा सकती है और लिखी जा चुकी है इसलिये अब नये बिम्बों मे प्रकृति को देखें और प्रकृति पर लिखी कविताओं को पढें जैसे केदार नाथ अग्रवाल बाबा नागार्जुन आदि
Naa koi shah hai naa maat hai!!!
Waah kyaa baat hai!!!
~Jayant
kamaal का लिखा है.............utne ही sundar chitro से sajaayee है यह रचना........... prakriti एक rahasy ही तो है अपने आप में.......... आपका लिखा हर चाँद, हर शब्द praakriti की nayee daastaan bayaan kartaa है..........lajawaab लिखा है.... bahoot bahot badhaai
I may just be inventing a phrase here,but I will like to say that u have got a great 'poetic intuition'...again it was a terrific composition...words impressed here and there but its the idea that sticks out...beautiful!!
http://pyasasajal.blogspot.com/2007/09/blog-post.html
ye "kshitij" ki idea pe hi ek composition hai meri...ek mera interpretation u can say...do have a look and let me know abt ur feedback... :)
I am just speachless on this post ...bahut sundar mitr.
is kavita ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya ..
behatreen lekhan . yun hi likhte rahe ...
badhai ...
dhanywad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
wah kitni sunderta ke saath prakarti ka ek alag hi sondrya bayan kiya hai ...........hatts of for this poetry ...its rely awesom .......
ek vishesh arth ko dharan kiye hue aapki ye kvita achchhi lagi.
ye dosaron ki chal ka kya abhipray hai.......
Navnit Nirav
navneet ji .....aapko mail kar diya hain...... umeed hain...arth spasht ho gaya hoga
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