Tuesday, May 19, 2009
फूलों के मध्य अदभुद संवाद
बगीचे में एक अजीब इत्तफाक हुआ,
फूलों के मध्य अदभुद संवाद हुआ,
प्रकृति की विडम्बना देखिये.....
उस अनोखी कथा कि मैं साक्षी बनी हूँ,
भाग्यशाली हूँ शायद,
जो बयां करने लायक बनी हूँ..............
एक फूल ने दूसरे फूल से कहा,
जब तितलियाँ इठलाती हुई, पंख फड़फड़ाती हुई,
अपने शूल को चुभोकर, रस चूसती हैं,
पीड़ा होती हैं, कराह पड़ता हूँ मैं,
पर मैंने तुम्हारी सिसकियों को कभी नहीं सुना,
यही चलन हैं कुल का अपने ,
ऐसा विचार कर, चुप रहा, दर्द सहा,
फिर भी मस्त रहा ।
इस पर दूसरा बोला .........
बाग़ को महकाने के लिए,
अपनी संतति को बढ़ाने के लिए,
चक्षुओ में स्नेह दर्शाने के लिए,
सदियों से कुफ्र सहे हैं हमने ,
अजीब हैं न ये बात.........
मुझको भी भेदा था इसने,
आज, फूलों की आह का मर्म समझ में आया हैं,
खिलखिलाहट के पीछे का दर्द समझ में आया हैं
मुस्कराहट के पीछे कि ये दास्ताँ दिल पे निशां छोड़ गई ,
और कागज पर बिखर एक संजीदा व्यथा बोल गई .........
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१२ मई २००९
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22 comments:
खूबसूरत भाव।
खुशी के संग में दर्द का होता है एहसास।
संतति क्रम आगे बढ़े चाहत सबके पास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सुन्दर पढ़ने योग्य रचना फोटो के साथ. लिखती रहिये.
ghazab
badhai...bahut badhai
खिलखिलाहट के पीछे का दर्द ---- बहुत खूब. सुन्दर रचना
MAN BHAVAN KAVITA AUR LA JAWAB SHAILY KE LIYE DHANYAVAD.
SARASWATI KI ANUKAMPA BANI RAHE.
IF POSSIBLE SEND YOUR EMAIL ID TO ME
RAMESH SACHDEVA (DIRECTOR)
HPS SENIOR SECONDARY SCHOOL
A SCHOOL WHERE LEARNING & STUDYING @ SPEED OF THOUGHTS
M. DABWALI-125104
HERE DREAMS ARE TAKING SHAPE
PHONE 01668-230327, 229327
MOBILE 09896081327
www.haryanapublicschool.wordpress.com
बहुत मनमोहक रचना है
शेफाली जी
आपकी रचना में एक बेहतरीन सन्देश है, पढ़ कर अच्छा लगा
ये पंक्तियाँ
बाग़ को महकाने के लिए,
अपनी संतति को बढ़ाने के लिए,
चक्षुओ में स्नेह दर्शाने के लिए,
सदियों से कुफ्र सहे हैं हमने ,
और ये पंक्तियाँ
आज, फूलों की आह का मर्म समझ में आया हैं,
खिलखिलाहट के पीछे का दर्द समझ में आया हैं
बहुत ह्रदय स्पर्शी हैं
- विजय
aap sabhi ko hardik dhanyawaad.
Kislay ji , aapne mujhe shefali kaha, shayad galti se aisa ho gaya, kripya " PRIYA" kahiye hame
TV par ek vigyapan dekha karta tha
"Dard mein bhi kuchh baat hai, dard shwet hai dar syam hai"
uske bad agar kuchh yad rahega to wo hain aapki is kavita ki kuchh pantiyan.
Bahuch pyari kavita hai.
Navnit Nirav
phulom ka marm bahut gehre ehsaas dil mein chod gaya,behad sunder rachana,dil ko chune wali,badhai.
bahut bahut bahut khoob....
सृजन के माधुर्य और पीडा दोनों को व्यक्त किया है आपने, एक सुंदर लय के साथ गतिमान होती कविता.
बहुत ही बेहतरीन और हाँ आपने इस रचना के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया ...मुझे पसंद आया
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर प्रिया... अब तक फूलों के रंग, उनकी खुशबू और सुन्दरता मन को लुभाती थी... उन्हें देखने का और समझने का एक नया नज़रिया दिया तुमने...
बहुत खूब लिखा है आपने ..पसंद आई आपकी यह रचना
जीवन में हर कहीं कविता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
sashat abhivykti
Ati sundar..
Aanand aa gayaa.
प्रिय जी
अति सरल शब्दों में इतना मार्मिक भाव.... वह भी सुन्दर लय में....
बहुत सुन्दर....
"खिलखिलाहट के पीछे का दर्द समझ में आया है"
आपकी ये पंक्ति ह्रदय को भेद गई...
खूबसूरत रचना के लिये साधुवाद...
bahut sundar rachna hai/....
yu to aapki rachna ki taareef khoob hui he, isliye me bhi karunga to maza jaataa rahega...par karna bhi hogi kyoki likha hi bahut sundar he-
fulo se ham jivan jeenaa seekhte he, uske dard aour auki muskuruahat hame bahut kuchh seekha dete he, bahut achhi rachna mili baachne ko/
saadhuvaad
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