Saturday, May 9, 2009

कवि, कविता और साहित्य






किसी ने मधुशाला का गान किया,
किसी ने सोमरस का पान किया,
मैं अलबेली क्या करती खाली,
मैंने साहित्य की ओर रुझान किया।


जिन्दगी ने करवट ली ऐसी,
कि मैंने कवियों का सम्मान किया,
ये दुनिया बहुत निराली हैं,
कवियों कि हर अदा मतवाली हैं।



यहाँ तो सुख का सागर हैं,
दुख में भी हरियाली हैं,
हर एक सींप मोतियों से भरा हुआ,
कवि दुख वर्णित कर बड़ा हुआ।


कोई एक विषय, ऐसा कह दो,
जहाँ कवि की लेखनी नही चली,
सदियों से बहती ये जल धारा,
अमिट, अटल, अनवरत बही ।


कोई जोगी बन बैठा, कोई योगी बन बैठा,
प्रेम विरह में कोई वियोगी बन बैठा ,
जिसने सबका संताप सहा, जिसने सांसो से ज्यादा,
एहसासों का गान किया,


जीवन पथ पर चलते- चलते,
संवेग, संवेदना, भावना को जीकर,
अनायास कुछ लिख बैठा,
जगत बोल उठा सहसा " देखो ये मानस कवि बन बैठा"

इनकी दुनिया में आकर,
इतना तो समझ लिया मैंने ...................


कबीरा फक्कड़पन में क्यो खुश था..
सूरदास बिन नैनो के क्यो मस्त था..
मीरा ने क्यो साधुवाद अपनाया..
ग़ालिब फकीरी में भी क्यो व्यस्त था..

मैं तो इनकी बगिया की,
एक अदना सी नाज़ुक कोपल हूँ,
शब्दों को गढ़ने की कोशिश करती,
चंचल शिशु सी किलकारी हूँ।

भले न करो स्वीकार मुझे,
पर थोड़ा सा प्यार तो दो,
कवियों की इस बगियाँ में
क्षण भर का विश्राम तो दो।

15 comments:

"अर्श" said...

achhi rachanaa ke liye badhaayee


arsh

रविकांत पाण्डेय said...

अच्छा लगा पढ़कर।

शोभना चौरे said...

shisu jaise machalkar apni bat manwa li .ati sundar rchna ke liye badhai.

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत अच्छा!!

कविताओं की फुलवारी मे,
शब्दों की प्यारी क्यारी मे,
ऐसे ही सृजन करते रहना,
नित नये भाव भरते रहना.

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

very nice

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

प्रिया जी ,
आपकी काव्य शैली se नहीं लगता कि आप
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की हैं ...बहुत संवेदनशील मन है आपका ..जो ऐसी रचनाओं को
जन्म देता है.यह कविता भी बढ़िया है .
हेमंत कुमार

Unknown said...

badhai

नवनीत नीरव said...

kavi dukh varnit kar bada hua........
baat apki thik hai par yah jaroori nahi ki har kavi dukh hi varnit kar ke parsidhhi pata hai...
achchhi kavit hai aapki.
Navnit Nirav

Vandana Singh said...

ye reet nibhate chalo jindgi preet ka geet hai ise gaate chalo sayad kavi kehlane ka sukh hame bhi mil jaaye. .............jahan na pahunche ravi vahan pahunche kavi ....kaviyo ki to baaat hi nirali hai

Mumukshh Ki Rachanain said...

कबीरा फक्कड़फन में क्यों खुश था
सूरदास बिन नैनों के क्यों मस्त था
मीरा ने क्यों साधुवाद अपनाया
गालिब फकीरी में क्यों व्यस्त था.

उपरोक्त पंक्तियाँ कह कर तो आपने सभी कवियों, लेखकों को उनकी हकीकत का सन्देश दे दिया....जिस पर उन्हें फक्र करना चाहिए.........

बहुत खूब.

कविता निहायत सुन्दर बन पडी है.

rajesh singh kshatri said...

Bahut hi sundar rachana...

L.Goswami said...

sundar ...bahut sundar.

Arvind Mishra said...

बहुत खूबसूरत और नवीनता लिए हुए ! आपसे आशाएं हैं !

डॉ. मनोज मिश्र said...

bahut behtreen rachna .

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

कवि, कविता और साहित्‍य के साथ समाज के रिश्‍तों का सुंदर अंकन।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }