ये ना कहना कभी
के मैंने तुम्हे
तन्हा छोड़ा
याद है साथ चलते चलते
राह में अक्सर
मैं रुक जाया करता था
तो
तुम नाराज़ हो जाए करती थी
हर कदम पर मैने
ना जाने कितनी नज्में बोई हैं
हर नज़्म हाथ थामेगी
कुछ डेलिकेट हैं
कुछ गबरू ज़वान सी
कुछ शज़र का रूप ले चुकी होंगी अब तक
कुछ नज्में उम्मीद से भी हो शायद
ये माथे पर शिकन और लबों पे मुस्कुराहट
बात पूरी होने दो
फिर पोज़ देना
दरअसल वो नज्में नही है
जीरोक्स करके रखी है उम्र मैने
ज़ज़्बातों को छोड़ो
प्रॅक्टिकली सोचो
तो अब इस से ज़्यादा
मै
क्या दे सकता हूँ तुम्हे?
रोना मत
तुम्हारे आंसुओं से
ये चायनीज़ प्लांट भी नही फलने वाला
जानती नही क्या
आंसुओं में सॉल्ट होता है
औ मिट्टी में नमक हो तो प्लांट
मुरझा जाता है
हमारे रिश्ते में नमक ज़्यादा था शायद
चाय में चीनी कितनी लोगी ?
ओह! तुम तो विदाउट शुगर लेती हो
31 comments:
u killing me yaar ..soch rhi hoon kya kahoon ..:)
ओह ! प्रियाजी !!
मैं नहीं सोचता कि आपकी इतनी खूबसूरत कोई नज़्म (या कविता)
इससे पहले मैंने पढ़ी हो । शायद इसे बहुत बार पढ़ूँगा, आगे भी ।
नज़्में उम्मीद से हों, इससे बढ़कर और क्या हो सकता है !!!
सादर,
....And 'sharing' on facebook !
Thanks.
-vinay.
just speechless priya..shabd nahi hai tareef ke
teekhi rachna ;-)
keep up the great work Priya Ji.
behtreen rachna
व्यावहारिकता... अनुभाव... भावनाओं... जज़्बातों का बेहतरीन कॉकटेल... खट्टा भी... मीठा भी... तीखा भी !!
नमक की अधिकता ..रिश्तों को भी मुरझा देती है ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
भूलकर तुझको पशेमां हूँ बहुत मै
लोग कहते है बहुत अच्छा किया है -शहरयार
हर कदम पर न जाने कितनी नज्में बोई हैं
नमक गहरा है
नज्में बातें करती हैं
डॉ. साब आज हर जगह शहरयार को चिपका रहे हैं, एक मैं भी -
"तुझको रुसवा ना किया, खुद पशेमां हुए,
इश्क को रस्म को इस तरह निभाया हमने "
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...बेहतरीन ।
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
वाह!!!!! जी आज तो कमाल ही हो गया. लाजवाब!!!! नमक ही नमक है. नमक की अधिकता तो जान ही ले लेती है. अपनी नज्मों को सहेज कर रखें ये फलती फूलती रहेंगी.
kuch delicate
kuch gabru
.......
kuch nazmein umeed se hon shayad
Wah behtareen laga ye khayal
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
kahan se laye itne sunder bhaw ki kuch bol hi nahin pa rahi hoon.
प्रिया जी गहरे जज्बातों से भारी हुई सुंदर कविता .......... बहुत ही भावपूर्ण
फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
रमिया काकी
Bahut Khubsurat.
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..निशब्द कर दिया...बहुत सुन्दर
ओह! क्या कहूँ निशब्द कर दिया।
भावपूर्ण खू्बसू्रत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
ज्यादा नमक रिश्तों को मुरझा देता है ...
वाकई !
रचनात्मक अभिव्यक्ति ...!
namak ki ahmiyat bata di.
maarmik rachna.
प्रिया जी
नमस्कार !
एक कविता में इतनी अनुभूतियां ! इतने भाव !
दरअसल वो नज्में नहीं है
जीरोक्स करके रखी है उम्र मैंने
क्या अंदाज़े-सुख़न है … वाऽऽह !
आपकी लेखनी से और भी श्रेष्ठ सृजन होता रहे … भावों को अभिव्यक्ति मिलती रहे …
~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
kadam kadam par nazmen ...
nazmen nahin umar hain..
(mitti) rishton me salt..
...without sugar
read it many times....
--is bahut sundar rachna ke liye
naye varsh ki shubhkanaon ke saath
dhanywaad--
अच्छी रचना
आपको नव वर्ष की बहुत बहुत बधाई हो
प्रिया जी, आपकी नमकीन कविता पढ कर मजा आ गया। हार्दिक बधाई।
---------
पति को वश में करने का उपाय।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
अरे बाप रे ,इतना सटीक .पचाना मुश्किल है.पर आपकी सभी पोस्ट पढनी पड़ेगी.अफ़सोस! इतनी देर बाद ब्लॉगर क्यों बना.आपकी कलम को शुभ कामनाएं
कुछ डेलिकेट हैं
कुछ गबरू ज़वान सी
कुछ शज़र का रूप ले चुकी होंगी अब तक
कुछ नज्में उम्मीद से भी हो शायद
aaj dobara padhne aaya.....man kiya inhe chura lun....
प्रिय जी आपने कविता लिखी है या अनुभूतियों का खजाना खोल दिया है ? अदभुत व मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति
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