कितनी छिछली और सतही होती हैं
दीवारे वक़्त की
कभी उनमें कैद रुका सा आदमी
कभी बहता आदमी
दीवारे वक़्त की
कभी उनमें कैद रुका सा आदमी
कभी बहता आदमी
देखा तो होगा तुमने
दीवारों पे उड़ता आदमी
आदमी के मायने वक़्त है
या वक़्त के मायने आदमी
दगाबाज़ वक़्त या आदमी
मानो न मानो
ये वक़्त आदमी से कमतर नहीं
13 comments:
प्रियाजी,
सल्वादोर डाली के चित्र सहित आपकी कविता एक
सर्वथा उपयुक्त वक्तव्य बन गयी ।
किन्तु शायद आपने चित्रकार का नाम कहीं नहीं दिया ।
शायद वक़्त आदमी पर हावी है ।
सादर,
bahut sunder khyaah hai yaar ....jab akele me apni parchhaiyon se baatn ho to aksar yahi khyaal aata hai :)
waqt aadmi se kamtar nahi...bahut bada satya
विनय जी शुक्रिया
चित्रकार का परिचय देने के लिए.....जों हम जानते तो ज़रूर लिखते.....देखिये सुधार लिया हमने
वक़्त और आदमियत दोनों हावी हैं....सही कहा आपने :-)
गहन बात को रखा है इस रचना के माध्यम से ..
बिलकुल कमतर नहीं...
सच है...
सुन्दर कविता बहुत ही सारगर्भित.... पहली बार लगा थोडा और होना चाहिए था ... फिर लगा, नहीं, कम शब्दों में समेटा गया है इसे... निष्कर्ष के रूप में...
लगाई गयी चित्र के बारे में अमरेंदर और अपूर्व के एक पुरानी पोस्ट से जानकारी मिल सकती है... चित्र शानदार है...
बहुत बढ़िया!!
तुमने सुनाई थी शायद पहले कभी... जैसा की तुमने बताया... पर हमें याद नहीं... अच्छा ज़रा ये भी याद दिलाओ तारीफ़ भी करी थी क्या तब ? :-) चलो रहने दो... अच्छे काम दोबारा करने में क्या हर्ज़ है... एक शब्द में कहते हैं Awesome !!
कम शब्दों में बड़ी बात कह दी... वक़्त की हर शह ग़ुलाम, वक़्त का हर शह पे राज...
वक्त आदमी से कमतर नहीं..बहुत सच कहा है..छोटी सी प्रस्तुति पर गहन चिंतन से परिपूर्ण.बहुत सुन्दर.
प्रिया जी!
अच्छा तुलनात्मक विश्लेषण... मगर कहावत है, वक्त का मारा आदमी या आदमी खाली समय में किल्स द टाइम!!
फिर से एक बेहतरीन प्रस्तुति. कम शब्दों में बहुत कुछ. बिलकुल सच ही है वक़्त भी आदमी/इंसान से कम नहीं
प्रिया जी अच्छी रचना शब्दों का चयन उत्कृष्ट
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