तेरे जाने का सबब मालूम नहीं
आने की भी वजह कहाँ थी कोई
आज बहुत याद आये तुम
सोचती रही
क्यों किया ऐसा ?
कोई गलती बताते मेरी
गुस्सा करते,
चीखते, चिल्लाते, झगड़ते
इल्ज़ाम लगाते
बिन आहट चले गए
दबे पाँव
अलमारी खोली
फाइल निकाली
वो नन्ही सी डायरी ...
जिसमें सिर्फ एक निशानी है तुम्हारी
तुम्हारा नाम
अपने ही हाथो से लिखा था तुमने
उन अक्षरों को बार-बार छू
तुम्हारी मौजूदगी को महसूस किया मैंने
अब इस बात पर तो कोई ऐतराज़ नहीं ना ?
14 comments:
dil ke dard ko bayan karti ek sunder rachna. aabhar.
बहुत ’कूल’,
सरल भावाभिव्यक्ति,
स्नेह के ’यथार्थ’ की !
kyaa kahoon pata nahi ......lekin ek sher hai ...kuch cheese kuch yaade ..ye vo dava hai jo jahar si hai ,
ऐतराज़ गर है
तो आ ही जाओ
याद किया है मैंने
हिचकियाँ लेते आ जाओ
Hello dear,
It is simply wow!
Regards,
Dimple
मेच्योर होने में हम यह सब खो बैठे... अब आगे आप लोग ही संभालिये
प्रिया जी! इन्तज़ार करें, क्या पता कब वो गौतम बुद्ध होकर लौटे!!
straight from the heart Priya ji....i can understand the feeling...awesomely written!
straight from the heart I am sure! I can feel the feeling of course....keep rocking Priya jee!
behad komal aur sunder bhaw .
kya kahun .. do baar padh chuka hoon aur man me kuch bheeg gaya hai .. gala me kuch ruk gaya hai ..
aapko salaam
bahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
अंतर्द्वंद को बखूबी उकेरा है. किस तरह से जीवन में घटने वाली हर छोटी बड़ी बात को सामने रखा है. बेमिसाल है
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
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