Sunday, September 27, 2009

मुक्तक





१.


इस दिल ने जो भी चाहा वो कभी ये कह नहीं पाया,
परिणामो से इतना डरा कि ये जोखिम ले नहीं पाया,
कमी खलती है जीवन में उन हसरतों की मुझको
जो बीजो में तो है लेकिन अंकुरित हो नहीं पाया॥

२.



बसंती रूप-रंग धर कर फिजा मेरे घर आई थी,
मेरी चौखट पे आकर के जोर से आवाज़ लगाईं थी,
मै बहुत तेज से दौडी और फिर ठिठक सी गई
एक झोंके की बेवफाई अचानक याद आई थी॥

३.



तुम तो खेल रहे थे हमसे पर हम थे संजीदा से,
तुमको लेकर देख रहे थे सपने कुछ पसंदीदा से,
पलकों के घूंघट तक तो सपना था बहुत सुहाना सा,
सिन्दूरी सुबह के आते तुमको जाने का मिला बहाना सा॥

४ .


शिकायत नहीं है मुझको तुमसे तकदीर ही मुझसे रूठी है,
अब तो ख्वाबो, ख्यालों की दुनिया लगती मुझको झूठी है,
जानते हैं यहाँ सब कि सपनो से मेरी लडाई है,
सपनो से जुदाई मान भी लूं पर तेरा होना सच्चाई है॥

५ .


कदम न आगे बढे न पीछे हटे,
हम दोनों जहाँ थे वही पे रहे,
वक़्त चलता गया रुका ही नहीं,
अब तुम हो कहीं और हम है कहीं ॥

६ .


मन में जो अमिट कहानी थी, तुमने वो कब जानी थी,
ह्रदय में अनकही गाथाये थी लबो पे उतर न पाई थी,
गुरुरे मद में चूर मेरा झूठ तो देखिये साहेब,
कहीं मै रो न दू इस वास्ते तेरे जाने की महफ़िल सजायी थी॥

७ .



हवाओं सुना ज़रा ठहरो मेरी ताल से ताल मिलाओं,
दरियाओं के संगम को साहिल पे ला के दिखलाओ,
क्यों न नाज़ हो खुद पर सुनो ए आसमां वालो,
बिना छल के समंदर मथ हलाहल पी के दिखलाओ॥

८ .



इन किताबों से मुझे दोस्ती करने दो,
जुनू शायरियों का कुछ कम ही रहने दो,
ठाहको के बाज़ारों में ये बेमोल बिकती हैं
पर सच है इन्ही के कारण महफिले सजती हैं॥


९ .


"नहीं है वादा कोई के हमेशा साथ निभाएगे,
कारण- अकारण बस यू ही मिलते जायेगे,
कभी दुश्वारिया पता चले तो बस इतना करेगे,
तेरे नाम की दुआ पढ़ उससे फरियाद करेंगे॥ "


१० .




ये मत सोचना के तुम मेरे लिए कुछ खास हो,
रुपहले सपनो का तुम एक आभास हो,
रंगों को मेरे जीवन में सजाया था कभी तुमने
रंग धुल गए है अब मै खुश हूँ तुम आबाद हो॥


25 comments:

पी के शर्मा said...

वाह वाह वाह
मुक्‍तक अच्‍छे हैं
फिर भी थोड़ा और मेहनत मांगता है भाषाई प्रयोग
अन्‍यथा न लें

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी वाह बेहतरीन बहुत अच्‍छा लिखते हो

विनोद कुमार पांडेय said...

बढ़िया रचना...दशहरा की हार्दिक शुभकामना..

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया मुक्क्तक है
नवरात्र और दशहरा पर्व की मंगल शुभकामनाये .

M VERMA said...

एहसास की सुन्दर अभिव्यक्ति

vandana gupta said...

behtreen muktak

SACCHAI said...

" bahut hi accha likha hai aapne ..aapki lekhani ko salam ."

" aapko hardik aamantarn hai hamare blog per kabhi padhariye "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

http://hindimasti4u.blogspot.com

Mithilesh dubey said...

क्या बात हैं। बहुत ही सुन्दर , भावनाओं को समेटे लाजवाब रचना। बहुत-बहुत बधाई

अनिल कान्त said...

इस पोस्ट की रचनाओं को पढ़वाने के लिए शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया

Sudhir (सुधीर) said...

वैसे तो सारे के सारे छंद बहुत अच्छे हैं किन्तु पहले दोनो पद्य मन को बहुत भाए....अच्छे भाव उभर कर आयें हैं. साधू!!

विनोद कुमार पांडेय said...

aapki ye char char laayine ham ne fir padhi..sach me bahut sundar bhav piroya hai aapne...dhanywaad priya ji..

रश्मि प्रभा... said...

हर बढ़ते कदम पर खूबसूरत,गहन भावनाओं का संयोजन है,
तारीफ से बढ़कर लिखा है

Vandana Singh said...

kya baat hai priya ...ye rang to bha gaya hamko sachmuch ....sabhi sher mere fev hue ..lekin main naraj hoon maine itni der se jo padhe :)

Anonymous said...

bahot khoob.........

http://rajdarbaar.blogspot.com/

शरद कोकास said...

मुक्तक अच्छे है लेकिन शिल्पगत बहुत सी कमियाँ है केवल तुक के चक्कर मे न पड़ें और थोड़ा बेहतर रचने का प्रयास करे - शुभकामनायें -शरद

Unknown said...

bahuthi acha likhti hai aap priya
wakai sacha bayan v sahaj v batcheet ki bhasha mein turant sampreshya...badhai

Unknown said...

waah waah !!

हरकीरत ' हीर' said...

जो बीजों में तो है पर कभी अंकुरित हो नहीं पाया ....

बहुत खूब ....!!

एक झोखे की बेवफाई अचानक याद आई .....

सुभानाल्लाह ....!!

और ये तो आँखें नम कर गया ......

कहीं मैं रो न दूँ इस वास्ते तेरे जाने की महफ़िल सजायी थी ....!!

vijay kumar sappatti said...

priya , amazing work of words.. mujhe to is baat ka dukh hai ki main der se aaya .. saare ke saare muktak behatreen ban padhe hai.. lekin aakhri waal bejod hai .. i am speachless.

just kudos boss!!!

meri badhai sweekar kare .

regards,

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

अमिताभ श्रीवास्तव said...

मुक्तक। इस सन्दर्भ में अल्पग्यान है। किंतु जिस तरह के शब्दों में रख पिरोया गया है, यकीनन खूबसूरत है। आपको थोडा सा बताउंगा, यदि इसे आलोचना ना समझें तो वाजिब होगा। मुक्तक काव्य तारतम्य के बन्धन से मुक्त होने के कारण ही मुक्तक कहलाता है। और उसका प्रत्येक पद स्वतह ही पूर्ण होता है। हालांकि इसमे क्रमन्यास हो सकता है, आप यदि गीतावली पढें या सूरसागर के पद, तो मुक्तक को अपने अच्छे शब्द्ज्ञान के सहारे अधिक उम्दा बना सकेंगी। आपमें शब्दों की कमी नहीं है। उसे सटीक ढंग से जमाती भी हैं। शेष आपने अच्छे ढंग से अपनी बात लिखी है।
साधुवाद।

Ambarish said...

bahut badhiya the aapke muktak.. dekh kar lag gaya ki aap dr vishwas sahab se prerit hain.. aur sanyog dekhiye.. related posts mein unka zikr bhi mil gaya...
accha likha hai aapne..

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

प्रिया जी,
आपके सभी मुक्तक एक से बढ़कर एक हैं---किसकी तारीफ़ करूं--किसे छोड़ूं--फ़िर भी यह मुक्तक कुछ खास लगा--
हवाओं सुनो जरा ठहरो-----
यह मुक्तक आपके प्रकृति से लगाव का परिचायक है।
आप अपनी रचनायें कुछ अच्छी स्थापित पत्रिकाओं में भी भेज सकती हैं।
हेमन्त कुमार

Science Bloggers Association said...

बहुत ही सुंदर मुक्तक पढवाए आपने। आभार।
----------
डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर व्यंजनाएं।
दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
आप ब्लॉग जगत में महादेवी सा यश पाएं।

-------------------------
आइए हम पर्यावरण और ब्लॉगिंग को भी सुरक्षित बनाएं।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर व्यंजनाएं।
दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
आप ब्लॉग जगत में महादेवी सा यश पाएं।

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