(जीवन से कुछ पल निकाल फिर हाज़िर हुई हूँ आज। एक नई सोच के साथ.... सुना है कि ईश्वर के पास एक बहीखाता होता है ,जिसमें हमारे भूत, भविष्य और वर्तमान का लेखा- जोखा होता है, कब, क्या कहाँ, कैसे होगा ये सब पूर्व निर्धारित है..... सोचिये वो बहीखाता हाथ लग जाये तो... आप सब का तो नहीं जानती पर हम तो कुछ यूँ कर गुज़रे शायद .......)
मेरे खुदा बस इतना रहमत कर दे,
ज़िन्दगी की किताब की 'इंडेक्स' दे दे,
मै सिर्फ इतना करूंगा..
किताब के वर्क पढ़..
ख़ुशी, गम के पन्नो का नंबर
नोट कर लूँगा
जब कभी तुम थक जाना
मै अपनी मर्जी से वर्क पलट
एक हिस्सा जिन्दगी जी लूँगा
मेरा फ़रेब बस इतना होगा
जल्दी -जल्दी ख़ुशी के वर्क पढ़ ...
लम्हा - लम्हा वो वक़्त जी लूँगा
हाँ तुम्हारी प्लानिंग गड़बड़ होगी
नाराजगी भी जायज हो शायद ..
मुझे सजा सुना देना मौत की
गम के दिनों से तो मौत भली
सफाई में इतना कहना है मुझे
"तेरी लिखी पे मैंने ..
अपनी सोच डाल दी...
अपनी खुदी खुद पर निसार दी...
मैंने लिखी कुछ एक साथ जी ली...
जो अच्छी लगी जिन्दगी,
जाम जान फटाफट पी ली।
कुसूर इतना है मेरा
तूने फलसफे बनाए जिंदगी के
मैंने उसमें अपनी मर्जी से ...
आसानी ढूंढ ली.
मेरी जिंदगी की सहूलियत को
गुनाह जाना है तुमने ,
मुझे सजा देने का हकदार भी खुद को
माना है तुमने ,
संसार को तो नश्वर बनाया है तुमने ,
अचंभित हूँ ....और इसमें ही जीवन सजाया है तुमने ।
हे अजेय, अजन्मा, अरूपा, सर्व्सक्तिमान
मुझे तो बस इस शाश्वत सत्य को अपनाना है ,
तिनका - तिनका दुःख सहने से बेहतर तो ...
मौत को गले लगाना है ,
देखो इसमें तुमको भी आसानी होगी ,
प्रकृति का नियम भी कायम रहेगा ,
और मरने में बस थोडी मेरी मनमानी होगी ।
लगता है कन्विंस हो गए हो
या फिर मैं और बोलू .......
सोचने के लिए वक्त चाहिए तो ले लो,
पर निर्णय थोडा जल्दी और पक्ष में देना ..
पल भर का तनाव भी अच्छा नहीं लगता,
गम का कोई लम्हा सच्चा नहीं लगता ,
यू नो " सुख और खुशियों की आदत सी पड़ गई है मुझे "
ज़िन्दगी की किताब की 'इंडेक्स' दे दे,
मै सिर्फ इतना करूंगा..
किताब के वर्क पढ़..
ख़ुशी, गम के पन्नो का नंबर
नोट कर लूँगा
जब कभी तुम थक जाना
मै अपनी मर्जी से वर्क पलट
एक हिस्सा जिन्दगी जी लूँगा
मेरा फ़रेब बस इतना होगा
जल्दी -जल्दी ख़ुशी के वर्क पढ़ ...
लम्हा - लम्हा वो वक़्त जी लूँगा
हाँ तुम्हारी प्लानिंग गड़बड़ होगी
नाराजगी भी जायज हो शायद ..
मुझे सजा सुना देना मौत की
गम के दिनों से तो मौत भली
सफाई में इतना कहना है मुझे
"तेरी लिखी पे मैंने ..
अपनी सोच डाल दी...
अपनी खुदी खुद पर निसार दी...
मैंने लिखी कुछ एक साथ जी ली...
जो अच्छी लगी जिन्दगी,
जाम जान फटाफट पी ली।
कुसूर इतना है मेरा
तूने फलसफे बनाए जिंदगी के
मैंने उसमें अपनी मर्जी से ...
आसानी ढूंढ ली.
मेरी जिंदगी की सहूलियत को
गुनाह जाना है तुमने ,
मुझे सजा देने का हकदार भी खुद को
माना है तुमने ,
संसार को तो नश्वर बनाया है तुमने ,
अचंभित हूँ ....और इसमें ही जीवन सजाया है तुमने ।
हे अजेय, अजन्मा, अरूपा, सर्व्सक्तिमान
मुझे तो बस इस शाश्वत सत्य को अपनाना है ,
तिनका - तिनका दुःख सहने से बेहतर तो ...
मौत को गले लगाना है ,
देखो इसमें तुमको भी आसानी होगी ,
प्रकृति का नियम भी कायम रहेगा ,
और मरने में बस थोडी मेरी मनमानी होगी ।
लगता है कन्विंस हो गए हो
या फिर मैं और बोलू .......
सोचने के लिए वक्त चाहिए तो ले लो,
पर निर्णय थोडा जल्दी और पक्ष में देना ..
पल भर का तनाव भी अच्छा नहीं लगता,
गम का कोई लम्हा सच्चा नहीं लगता ,
यू नो " सुख और खुशियों की आदत सी पड़ गई है मुझे "
25 comments:
बहुत सुन्दर रचना है
---
'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!
लगता है कंविस हो गये हो ---"
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
yeh mollik phalsafa accha laga.
achchha hai shabdo ka pryog ......bhaw atisundar
भावनाएं जब शब्दों में अभिव्यक्त होती है... तो इसी तरह सुन्दर रचना कागज की जमीं चूमती है....
मगर ख्याल रखियेगा... जिन्दगी का इंडेक्स इन्सान के पास खुद ही होता है.... फर्क सिर्फ देखने का होता है....
यूं ही लिखते रहिये..... कभी वक्त मिले तो इस ब्लॉग की तरफ भी रुख करियेगा....
शुभकामनाओं के साथ....
httP://balsajag.blogspot.com
khoobsoorat khyal
वाह......खूबसूरत एहसास
waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaw ....gajab kar diya sach me dil ko chooti chali gayee ek ek line ...ek bholapan nadani or thodi si manmani bahut aachi lagi ....awesom .....blog par vapas jaldi aana ...
जितने अच्छे विचार, उतनी ही खूबसूरती से परोसा है आपने.. हैपी ब्लॉगिंग
amazing writing ji , itna accha likha hia , main do baar padh liya .. kya kahun , aapke shabd hi bol rahe hai ..
regards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
apka andaj ekdam akhadiya lag raha
apni hi ada hai is rachana ki
oro se ekdam juda.
maja aa gaya. badhai.
wah kya bat hai
kya ada hai
maja aa gaaya is rachana ko padhker
ye nirala dhang man ko bha priya ji. nirali rachna ke liye bandhai.
अति सुन्दर.
{ Treasurer-T & S }
Rachna achchhi hai.Nye prayog ne ise nayapan pradan kiya hai.
bahut achcha likha aapne
aap hamare blogs par aapko
achcha lagega
blogger
aleem azmi
SUNDAR RACHNAA HAI... SACH MEIN AGAR AISAA HO JAAYE TO KYAA BAT HAI
waaah ! kya khub hai lagata hai ki aapne dil ki gharai me kalam ko dubokar likha hai
----eksacchai {AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
ह्म्म्म... भगवानजी की प्लानिंग में इतनी गड़बडी करने के बाद भी attitude तो देखिये ज़रा... कन्विंस हो गए हो या और बोलूँ :-)
हमेशा की तरह मज़ा आ गया... पर अगर सारी खुशियाँ एक साथ और सारे दुःख एक साथ मिलेंगे तो सब कितना monotonous हो जाएगा... न ख़ुशी का मज़ा रहेगा और न दुःख का एहसास... लाइफ का असली मज़ा तो दोनों के mix and match में है... नहीं ??
bahut hi khoob... zabardast writing hai...
har jagah laga ki tum apni marzi se jina chahti ho har pal ko jine ke liye khuda se request ki wajah shayad khud se jine ko lekar hai.
saifu. :-)
क्या खूब लिखा है आपने. बहुत अच्छा लगा. बधाई. आपकी और मेरी लेखनी में फर्क मात्र इतना है की आप शब्दों को कविताओ में पिरोती है और मैं शब्दों से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरे ब्लॉग पर स्वागत है. www.gooftgu.blogspot.com
Waah....Priya ji lajwaab kar diya aapne to apni planing se ...!!
bahut khoob ....bahut sunder ....nayi soch ke sath sarthak rachna .....!1
आपकी अभिव्यक्ति असरदार है .. हैपी ब्लॉगिंग
एक रौ है ऊपर से नीचे तक लिखे में ....
ज़िन्दगी की किताब की 'इंडेक्स' से ...लेकर "तेरी लिखी पे मैंने ..
अपनी सोच डाल दी...तक.....
"लगता है कन्विंस हो गए हो
या फिर मैं और बोलू ......."
पर एक उधघोषणा सी है या बगावत......जो भी है अद्भुत है .निराली है ओर बहुत कन्विंसिंग है....
भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति
तेज धूप का सफ़र
zindgee ki kitab ke index wali planning bahut achhi lagi...plan excute ho to btana main bhi karungee...
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