आज काफी दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर। आगे भी लंबे अन्तराल के बाद मुलाकात होगी। कुछ व्यस्तता अधिक रहेगी।
बरसात का मौसम है। प्रकृति से हमारा विशेष लगाव किसी से छुपा नही है। ये अलग बात हैं कि बादल कुछ ख़फा-ख़फा से हैं ....लेकिन इस दौरान प्रकृति के ऐसे नज़ारे देखने को मिले कि कुमुदनी का हाल- ए-दिल लेखनी से फूट पड़ा। आप लुत्फन्दोज होइए इनके साथ .... हम फिर हाज़िर होते हैं कुछ अरसे बाद।
हरे- हरे पत्तो के दल,
उन पे बिखरी ओंस,
गुलाबी नाजुक प्रहरियाँ,
रही है डोल-डोल,
हाय रे! ये दिलनशी कुमुदनिया,
छेड़े है मन के तार,
अब कैसे कोई भंवरा,
बांधे मन की डोर।
जल के बीच खिला- खिला यौवन छलक उठा ,
पवन का मन मचल उठा,
बेईमान! हौले से छू उठा,
पवन की छुअन एक सिरहन से फैला गई,
कुमुदनी इठला कर हवा संग हिलोर लगा गई
मधुकर ये दृश्य देखकर ठगा सा रह गया,
मंत्रमुग्ध हो, कुमुदनी के रूप- रंग पर खिंचा चला गया,
संध्या सुन्दरी भी दस्तक थी दे चुकी,
कुमुदनी भी सांझ के इशारे को समझ चुकी,
खिली-खिली पंखुडिया कुमुदनी ने समेट ली,
प्रेयसी के जाल में भंवरा था फंस चुका।
पहले तो भंवरा बहुत घबराया,
कुमुदनी पे फ़िदा होकर पछताया,
फिर उसने कुमुदनी पर अपने प्रेम बाण छोड़े,
सारे ग्रंथो के सार निचोड़े,
कोमल ह्रदय कुमुदनी, तुंरत ही पसीज गई,
भंवरे के कैद मुक्ति का उपाय सोच गई।
नाजुक सी कोमल पंखुरिया...
भँवरे ने भेद दी,
खुद को आहत करा कर...
कुमुदनी ने वफ़ा की मिसाल दी,
कैद मुक्त होकर भंवरा तो उड़ चला ,
लेकिन कुमुदनी पर प्यार का रंग चढ़ चला ।
प्रभात फिर हुआ,
रश्मि फिर पड़ी,
प्रकृति नियम जान कर,
कुमुदनी खिल उठी,
पंखुरियों पे उसके कल का वो चित्र था.
हर एक दल पर भँवरे का दिया छिद्र था.
लोगों ने कहा की खूबसूरती पे दाग था,
लेकिन वो थी खुश बहुत,
क्योकि उसका मन साफ़ था।
उन पे बिखरी ओंस,
गुलाबी नाजुक प्रहरियाँ,
रही है डोल-डोल,
हाय रे! ये दिलनशी कुमुदनिया,
छेड़े है मन के तार,
अब कैसे कोई भंवरा,
बांधे मन की डोर।
जल के बीच खिला- खिला यौवन छलक उठा ,
पवन का मन मचल उठा,
बेईमान! हौले से छू उठा,
पवन की छुअन एक सिरहन से फैला गई,
कुमुदनी इठला कर हवा संग हिलोर लगा गई
मधुकर ये दृश्य देखकर ठगा सा रह गया,
मंत्रमुग्ध हो, कुमुदनी के रूप- रंग पर खिंचा चला गया,
संध्या सुन्दरी भी दस्तक थी दे चुकी,
कुमुदनी भी सांझ के इशारे को समझ चुकी,
खिली-खिली पंखुडिया कुमुदनी ने समेट ली,
प्रेयसी के जाल में भंवरा था फंस चुका।
पहले तो भंवरा बहुत घबराया,
कुमुदनी पे फ़िदा होकर पछताया,
फिर उसने कुमुदनी पर अपने प्रेम बाण छोड़े,
सारे ग्रंथो के सार निचोड़े,
कोमल ह्रदय कुमुदनी, तुंरत ही पसीज गई,
भंवरे के कैद मुक्ति का उपाय सोच गई।
नाजुक सी कोमल पंखुरिया...
भँवरे ने भेद दी,
खुद को आहत करा कर...
कुमुदनी ने वफ़ा की मिसाल दी,
कैद मुक्त होकर भंवरा तो उड़ चला ,
लेकिन कुमुदनी पर प्यार का रंग चढ़ चला ।
प्रभात फिर हुआ,
रश्मि फिर पड़ी,
प्रकृति नियम जान कर,
कुमुदनी खिल उठी,
पंखुरियों पे उसके कल का वो चित्र था.
हर एक दल पर भँवरे का दिया छिद्र था.
लोगों ने कहा की खूबसूरती पे दाग था,
लेकिन वो थी खुश बहुत,
क्योकि उसका मन साफ़ था।
24 comments:
आपकी रचना से दिल खुश हो गया
लेकिन वो थी खुश बहुत
क्योंकि उसका मन साफ था...
-बहुत गहरी बात!!
एक सुन्दर और कोमल रचना!!
sundar bhav
जल के बी खिला-खिला यौवन छलक उठा
वाह क्या बात है प्रिया जी। चित्र और शब्द-चित्र का संगम अच्छा लगा। शुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
bahutmohak sunder rachana badhai
waah waaah waaah ..ati sunder priya ......come back soon plzzzzz
aap bahut achhi kavitaye likhti hain.... hame kafi pasand aaya...aur hamne ise bookmark bhi kar liya hai.... hum inhe padhte rahenge,.... aapki rachnao me kafi vastwikta aur prem ki nischhalta jhalakti hai... interesting.
बहुत सुंदर रचना जो की संस्कृत साहित्य में लिखी गयी एक महान रचना की याद दिला गयी.
सुन्दर चित्रण है कुमुदिनी और भँवरे के प्रेम का............. सुन्दर शब्दों को संजोया है......... प्रेम गाथा का मनमोहक चित्रण है.......
प्रेम की अनूठी अभिव्यक्ति... बहुत सुंदर... दिल खुश हो गया पढ़ कर :-)
शब्द मालिका में गुंथे चित्रों से अभिव्यक्ति का सौन्दर्य और भी बढ़ गया है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
----------------
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wow..
jus luved ur imagination again.
the last lines are really beautiful...
will wait for ur next post..:)
vah prkrti ne anutha prem sandes .
tan man bhigo gya .
bdhai
bejod rachana...
dhanywaad..
hummmmmmmmmmm deno baad..... chalo dair aaywe durust aaye.....achha laga aapko phir se blog likhte hue.....
mere blog par bhi swawgat hai....
Wakai dilnasheen.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut khoobsurat
वाह प्रिया जी आपने सच्चे प्यार को क्या ख़ूबसूरत भाव से प्रस्तुत किया है.........
बहुत ही सुन्दर.........
वाह प्रिया जी आपने सच्चे प्यार को क्या ख़ूबसूरत भाव से प्रस्तुत किया है.........
बहुत ही सुन्दर.........
Adab ke ye rishte
Istarah chalate rahein
Tum likhati raho
aur sab padhte rahein...
Neelesh Jain, Mumbai
http://www.yoursaarathi.blogspot.com/
प्रिया जी , रचना तो सुन्दर है, परन्तु कुमुदिनी रात में खिलती है,अपने प्रेमी चांद को देखकर। भंवरे का सन्दर्भ कुमुदिनी से नहीं है।----
" कुमोदिनी जलहर बसे,चन्दा बसे अकास,
जो जाही की भावना,सो ताही के पास।"
डॉ. गुप्ता आपको रचना पसंद आई उसका शुक्रिया और सुझाव का भी स्वागत है . दरअसल रचना के निर्माण के लिए एक कलमकार की स्वतंत्रता ही इसे मान लीजिये आप... जो मैंने कमल को कुमुदनी का ही पर्याय मान लिया ...और मेरा आशय भाव को पाठको तकपहचाना था ... प्रसन्न हूँ कि आप पाठकगणों को भाव स्पष्ट है और आपने इसे पसंद भी किया ....भविष्य में भी आपके मार्गदर्शन और सुझाव की आकांक्षी रहूंगी.
सादर
प्रिया
language pe bahut command hai aapki...
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