Wednesday, May 13, 2009
एक ख्वाब अधूरा सा
आसमां ने मुझको दिया एक तोहफा,
सपनो की थैली संग, एक जवाबी लिफाफा,
गीतों की सरगम पे आंखों को मूंदा,
सपनो की थैली को ख्वाबो में खोला
देखा की आसमां ने मुझको, आसमानी बनाया,
आसमानी वसन से बदन को सजाया,
ओंस की बिदियाँ, गुलाब की लाली,
घटाओ के केश और इन्द्रधनुषी बाली
बादल का आँचल, सितारों की झांझर,
सूरज सा रथ और बर्फ की गाड़ी ,
चंदा हैं कोचवान, पीछे मैं बैठी,
खोजने चली सितारों में राजकुमार
चलता रहा रथ, ढूंढती रही आँखें ,
ग्रहों में, तारों में, नक्षत्रों में,
चंदा की चांदनी में, रागों की रागिनी में,
सरगम के बोल में, मिटटी की गंध में
नदियाँ की ताल में, दीपक की लौ में ,
मन की उमंग में, मस्तिष्क की तरंग में,
लहलहाते खेत में, छुक-छुक करती रेल में
पंछियों के गीत में, जीवन संगीत में
बस राजकुमार मिलने ही वाला था,
कि किसी की आवाज कान तक आई,
आँखें खोली, जम्हाई ली, अंगडाई ली,
ख्यालों ने ख्वाबों को वापस बुलाया
एकाएक फिर आवाज कान से टकराई ......
सूरज सर पर चढ़ आया हैं,
दिन कब का निकल आया हैं,
उठ, वरना देर हो जाएगी,
"कल्पना" तुझे छोड़ फिर कॉलेज चली जायेगी
आवाज सुन हडबडाई, फिर मुस्कुराई ..
धीरे से चादर हटाई ,
घड़ी की तरफ़ नज़रे घुमाई ,
क़दमों ने किया आईने का रुख ..
सोई- सोई सूरत में ख़ुद को निहारा,
उलझे बालों को हाथो से सवारा,
मन ही मन बुदबुदाई,
ओह नो ! " प्रिया ये सपना था सपना ..
सपने को छोड़ हकीकत में आओ,
जल्दी से कॉलेज के लिए रेडी हो जाओ,
वरना वो केमिस्ट्री वाली मोटी मैम आज तो पेरिओडिक टेबल का,
एक - एक एलिमेंट चुन-चुन कर पूछेगी,
और वो मैथस के खडूस सर,
डैनामिक्स क्लास में सारे सम्स तुझसे ही सोल्व करायेगे..
ऐसा सोचते ही होश उड़ गए,
सारे सपने चकनाचूर हो गए,
फटाफट कॉलेज के लिए तैयार हो गई,
जिंदगी की सच्चाई आईने की तरह साफ़ हो गई
आज भी अफ़सोस हैं मुझको .........
माँ थोडी देर रुक जाती , तो क्या हो जाता,
झेल लेती उन टीचर्स और हालत को,
अरे! कम से कम ख्वाब तो पूरा हो जाता :-)
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डायरी से
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21 comments:
achha likha hai aapne.
shuruyaati me ye kavita jhamaajhm lagi magar aakhir me maa ke liye udaas ho gayee....
arsh
प्रिया जी।
शब्द-चित्र सुन्दर बन पड़ा है।
अच्छे लेखन के लिए बधाई।
अच्छी कविता है। आप अच्छा लिखती हैं। भाषा भी अच्छी है। लेकिन कहीं कहीं पर मात्राओं की गलतियों आंखों को खटकती हैं। शीर्षक में भी मात्रा दोष है। कृपया ध्यान दें।
kya baat hai. bahut khoob. shuruati panktiyon mein shabdon ke kuchh naye kintu achchhe prayog dekhane ko mile.Achchha laga.ant bhi achchha raha.beech mein kavita thodi dhili pad gayi hai.shayad lambai ki wajah se.Over all.........behtarin rachana hai aapki.
Navnit Nirav
वाह प्रिया जी.
अच्छा सपना था..
सच हो जाए तो बताइयेगा.
:)
~Jayant
सुन्दर शब्दों में बाँधा है स्वप्न को ......!!
बहुत सहज ढंग से मन की संवेदना को कागज़ पे उतारा है आपने
प्रिया
ख्वाबों को शब्दों में आपने बड़ी सुन्दरता के साथ ढाला है.
कई जगह भावों को भी गति मिली है.
-विजय
bahut khoob, kamaal ki abhivyakti !!!!!
बहुत ही मन भावन अभिव्यक्ती
अति सुन्दर * * * * * *
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
waaw ........bahut khoob ............. ye khuab itne ajeeb hote hai dil ke fhir bhi kareeb hote hai.....magar afsos hakikat se bahut door hote hai
bahut khoob...
ओह,सच माँ रुक जाती तो एक ख्वाब रंग ले लेता और कलम में घुल जाता ......बहुत प्यारी रचना
रचना बहुत अच्छी लगी।कुछ हटकर...आप मेरे ब्लाग पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।
Ravindra ji, aapke sujhaav ke anusaar galtiyan sudhar li hain.Aapka bhaut-bahut dhanywaad mujhe avgat karane ke liye
bahut prabhavshali abhivyakti
कम से कम ख्वाब तो पूरा हो जाता ...
क्या बात है .ख्वाब के लिए आप की बेचैनी
काबिले तारीफ है .अति सुन्दर
सपने तो सपने होतें हैं..... जिसमे अधिकतर काश ही लगता है.........
लेकिन आपने काश को यहाँ माँ के माध्यम से प्रस्तुत किया.....
अच्छी कविता लिखी है......
aapne bahut accha likha hai .. bhaavo ki acchi abhivyakti hai .. maa ke baare me itne acche vichaar padhkar bahut accha laga
badhai
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Regards
Vijay
very nice u did.
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