Friday, April 24, 2009

कुछ बस यू ही ......




"पानी के खतरों से वाकिफ हूँ मैं मगर , जीने के लिए रोज़ समंदर तेरे पास आना पड़ता हैं . हालाँकि मेरा वतन हैं तुझसे बड़ा मगर चंद मछलियों के लिए तुझसे हाथ मिलाना पड़ता हैं "।

"मौका मिले कभी तो आ जाना मेरे घर ....ले आना कुछ मछलियाँ तोहफे में मेरे लिए खाली न भेजूगा तुझे अपने दर से मैं ...मिल बैठ कर कर लेंगे कोई सौदा एक -दूजे से हम "।




ऐ ! समंदर तुझे गुमा हैं अपने कद पर , मुझको देख नन्हा सा परिंदा हूँ .. तेरे ऊपर से गुज़र जाता हूँ।

7 comments:

अनिल कान्त said...

waah ...ultimate ...superb ...kya khoon likha hai aapne ...tareef ke liye shabd kam hain

श्यामल सुमन said...

शब्दों के संयोग संग अच्छी है तस्वीर।
सौदे की तकरीर से खूब चलाया तीर।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Vandana Singh said...

priya in panktiyo me to tumne sachmuch gagar me sagar bhar diya bahut hi badhiya ......

रश्मि प्रभा... said...

इसे कहते हैं खुद पर भरोसा......दाद देती हूँ इन तेजस्वी भावों के लिए.......

MAYUR said...

achhi tasvir

Anonymous said...

chand machliyon ki jagah koi aor ward hona chahiye
like pet ki bhookh ke lie ya jine ke lie ..
neelima

अविनाश वाचस्पति said...

चित्र और भावों का

बेहतरीन संयोजन

भाता है अपने मन।