Sunday, April 19, 2009
कविता क्या हैं ?
हम क्यों करते हैं कविता ? - आज ही एक कम्युनिटी में एक थ्रेड पढ़ा , " कविताओ के शब्द" । जिसमे कविता क्यो की जाती हैं इस पर प्रश्न उठाया गया था। जैसे ही सवाल कौंधा , दिमाग में जवाबों ने सिलसिलेवार दस्तक शुरू कर दी। पेश हैं उन्ही जवाबो की झलक, आप भी पढिये और आनंद लीजिये। और हाँ .......... अपने विचार जरूर व्यक्त करियेगा ..... कितनी सहमति रखते हैं आप हमसे :-)
जिन्दगी एक कविता हैं , कुछ गा कर जी लेते हैं ,
कुछ रो कर जी लेते हैं ,
कुछ हँस-हँस कर जी लेते हैं ,
कुछ खामोश रहकर सबकुछ पी लेते हैं।
कविता सर्जन हैं , विध्वंस हैं ,
संयोग हैं , वियोग हैं ,
मिलन हैं , विरह हैं ,
हर्ष हैं , विषाद हैं ,
प्रेम हैं और पाप भी।
माँ का प्यार है , पिता का दुलार हैं ,
नाना - नानी , दादा - दादी का आशीर्वाद है ,
भैया की कलाई हैं , बेटी की जुदाई है ,
साजन का आगन हैं और सास की लडाई हैं।
ससुर जी का अनुशासन हैं , जेठ जी का प्रशासन हैं ,
ननद की चुटकी हैं , देवरानी - जेठानी की तू-तू , मैं- मैं हैं ,
देवर की छेड़खानी हैं , बच्चो की मनमानी हैं ,
दिन -रात की थकान हैं और साजन जी की शान हैं ।
कविता स्कूल हैं , कॉलेज हैं , नौकरी हैं ,छोकरी हैं और गृहस्थी की टोकरी हैं ,
कविता मेरी सहेली हैं , पड़ोसन हैं , काम वाली हैं ,
और तो और इनकी ऑफिस की सेक्रेटरी हैं ,
और वही, बस वही मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी पहेली हैं।
कविता अहिल्या है , शबरी है , ताड़का है , कैकई हैं और मन्थरा हैं ,
कविता त्रेता की सीता , उर्मिला , मंदोदरी और त्रिजटा हैं ,
कविता द्वापर की देवकी हैं , जसोदा हैं , पूतना हैं ,
कविता गोकुल की गोपिका हैं , कान्हा की राधा हैं ।
कविता यमुना तीरे का कदम्ब का पेड़ हैं ,
द्वारिका की रुकमनी है , कन्हैया की लाडली सुभद्रा हैं ,
कविता अर्जुन की सारथी हैं , गीता का सार हैं,
इस सबसे बढकर कान्हा और द्रौपदी की बेमिसाल यारी हैं।
कविता सभी शास्त्रों का सार हैं ,
आत्मा हैं , ईश्वर हैं, शांति हैं , तृप्ति हैं ,
मौत हैं , जिंदगी हैं , हम हैं आप हैं ,
ज्यादा मत कुछ कहलवाओ भाई ,
कविता ही जननी ओह्म - ओंकार हैं।
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27 comments:
प्रियाजी
कविता समग्र जीवन और समाज की अभिव्यक्ति है.
अच्छा लिखा है आपने.
-विजय
shukriya vijay! ye to ek chota sa prayas tha.... bes aap yu hi prashansa aur aalochana kartey rahiy .... hum likhtey rahegay
बहुत सार्थक व्याख्या की है,बहुत अच्छी........
aapke is chote pryash ke sath hi aapka hardik swagat hai hindi blog ke jagat mein
प्रिय बन्धु
खुशामदीद
स्वागतम
हमारी बिरादरी में शामिल होने पर बधाई
मेरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि आज हमारे समाज का शैक्षिक पतन उरूज पर है पढना तो जैसे लोग भूल चुके हैं और जब तक आप पढेंगे नहीं, आप अच्छा लिख भी नहीं पाएंगे अतः सिर्फ एक निवेदन --अगर आप एक घंटा ब्लॉग पर लिखाई करिए तो दो घंटे ब्लागों की पढाई भी करिए .शुभकामनाये
अंधियारा गहन जरूरत है
घर-घर में दीप जलाने की
जय हिंद
mujhe kavita pasand aayi.bahv spst hai. agli kavita ka intajar rahega.
Navnit Nirav
jo kuch bhee ho saktee hai kavita , aapkee abhivyakti me paribhasit hai ..........sundarta se .
likhte rahiye .
aapka swagat hai !
Priya ji ,
bahut achchha likha hai apne kavita ke bare men...kavita to sab kuchh hai. is srishti ka aadi bhee aur ant bhee.apka svagat hai hindi blog jagat men.
HemantKumar
माँ का प्यार पिता का दुलार
साजन का आँगन और प्यार
दादा दादी नाना नानी का आशीर्वाद
प्यार,दुलार,आर्शीवाद ठीक है,पर सास की लडाई क्यों ..
प्रिया जी ..,आपका प्रयास सराहनीय है ,
आपका स्वागत है ,हमारी शुभकामनाए आपके साथ है आप् और बेहतर लिखें ..मक्
कहते हैं कि-
आत्मा के सौन्दर्य का शब्द रूप है काव्य।
मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
aap to chhaa gaye ...kya rachna likhi hai ...waah maza aa gaya
jab man ke bhav,dard,khushi,gam,umang,vedna,samvedna,milan,judai kee bat shabdon ka rup le le to usko kavita,gazal,kahani jo bhee kaho. narayan narayan
well i m not good with KaVIta bt aapne jo kavita ke baare main discribe kiya its awsome ....now main bhi kah sakta hui ki main bhi kavita ke baare main ....kuch to janta hui....khas tour par JINDGI ek kavita hai....kuch ga kar ji lete hai...
wahhhh three clap for u.....mere blog par bhi swagat hai...
Jai Ho Manglamay ho...
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ...........
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
कविता अपने को ढूंढ़ना खंगालना है .....कविता एक हाशिये की आवाज है है...कविता दरअसल खामोशी की चीख है ...कविता एक स्वपन है ....कविता एक पश्ताप भी है......
अरे वाह हम तो सोचते थे कि हम ही यह जानते हैं....मगर ये क्या यह तो आप भी जानते हो....और मुझसे बहुत ज्यादा खूबसूरत बयान भी किया आपने.....!!सच.....!!
बहुत बढिया व सार्थक पोस्ट। बधाई।
बहुत सुन्दर रचना। बधाई। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।
कहीं पढ़ा था, शायद रघुवीर सहाय की काव्य पंक्ति है यह-
कविता क्या है?
हाँथ की तरफ बढ़ा हुआ हाँथ
देह की तरफ झुकी हुई आत्मा......."
सुन्दर कविता के लिये धन्यवाद ।
बच्चे की किलकारी में है कविता, कोयल की कूक में है कविता,
झरने की कल कल में है कविता, इस सृष्टि के हर कण में है कविता...
बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है कविता का प्रिया...तुम्हारी तूलिका की स्याही कभी ख़त्म न हो
हमेशा अपने शब्दों में चीज़ों को और लम्हों को ऐसे ही जीती रहो और उन्हें देखने का एक नया नज़रिया हमें देती रहो
खुश रहो...मुस्कराती रहो... अपनी तूलिका की तरह :-)
tumhari rachna ko padhne ke joonoon me main panne palat rahi thi .. maloom nahi tha har shabd me doobte jana hai ............. bahut bahut bahut khoob prya ye kavita ka varnan tumahri sath sath or aage tak jaaye ...or ham jaiso ko kavita ke is gehre dariya me baar baar nahanne ka har baar ek avsar mil jaaye........... good luck
just Excellent.. har kan kan main kavita basi hai... bahut khub...badhai sweekaare..!
सिर्फ यही कहूंगा- बहुत बढि़या।
kavita persundar kavita. wah
fursat ho to mere blog per bhi aayen aur comment bhi dein
http://www.ashokvichar.blogspot.com
शुभ विचार
बहुत ही अच्छी रचन है....एक बार फिर से बचपन की गलियों में घुमाने के लिए शुक्रिया ....भागदौड़ की इस ज़िदगी में योदों को भी याद करन मुश्किल से हो पाता है...ऐसे में ऐसी रचनाएं उन गलियों में फिर से ले जाने में सहायक होता है...धन्यवाद
आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
"एकलव्य"
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