मेरा दिल चाहता है
शून्य हो जाए
किसी भी जींस का बादल
धर्म बदल बन जाए कब्र
मृदुल हो जाए नियम
दुनिया के किसी भी साहित्य,
किसी भी कला का कोई भी कलाकार
मृत हो जाए सारे जीवाश्म
विलुप्त हो जाए सभ्यताएं
जो करोडो वर्षो तक विकासक्रम
और इतिहास को चिन्हित करते हैं
उत्खनन में खोजी मेरी चाहत की निशानियाँ
कार्बन डेटिंग से मिल जाए प्रमाण
धरती का सारा सौन्दर्य
मेरे प्रेम के आगे कुरूप हो जाए
विवशता शब्द को मिल जाए मृत्युदंड
बावजूद इसके
मेरा प्रेम अमर हो जाए
तुम्हे इतना प्यार करूँ
के क्षीर सागर का जल समाप्त हो जाए सूरज के हीलियम, हाइड्रोजन, टूट- टूट कर
गले न, अपितु सड़ जाए नाभिक में ही
हवाओं की गति शिथिल होते-होते गले न, अपितु सड़ जाए नाभिक में ही
ऑक्सीजन को सोख ले कार्बन
ऊर्जा का उत्सर्जन बंद हो जाए शून्य हो जाए
किसी भी जींस का बादल
धर्म बदल बन जाए कब्र
मृदुल हो जाए नियम
दुनिया के किसी भी साहित्य,
किसी भी कला का कोई भी कलाकार
ना दे पाए आकार मेरी चाहत को
शिल्प ,अक्षर निराकार हो जाए मृत हो जाए सारे जीवाश्म
विलुप्त हो जाए सभ्यताएं
जो करोडो वर्षो तक विकासक्रम
और इतिहास को चिन्हित करते हैं
रहे तो बस प्रेम सी पावन
उदभव और विनाश सी शाश्वतउत्खनन में खोजी मेरी चाहत की निशानियाँ
कार्बन डेटिंग से मिल जाए प्रमाण
धरती का सारा सौन्दर्य
मेरे प्रेम के आगे कुरूप हो जाए
विवशता शब्द को मिल जाए मृत्युदंड
बावजूद इसके
मेरा प्रेम अमर हो जाए
12 comments:
ओह! बेहद गहन और हटकर अभिव्यक्ति।
ओफ़्फ़ो... पज़ेसिव्नेस की हद है ये तो... सारा प्यार तुम ही कर डालोगी तो हम जैसे बेचारे लोग क्या करेंगे :P ... हे भगवान, थोड़ी अक्ल दो इस लड़की को... जाने क्या क्या सोचा करती है और जाने क्या क्या लिख डालती है... कुछ पल्ले नहीं पड़ा.. पर जो भी लिखा बहुत अच्छा लगा :)
prem kee prabalta kya kya soch jati hai... ek ek shabdon mein aaweg hai
oyeeee hoyee hoyye ...hmm keh dena accha to hota hai par mood nahi hai :P
बहुत खूब कहा है आपने ...।
प्रेम के अपरिमेय रूप .
बहुत खूब
प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाती कविता. प्रेम है ही अपरिमेय जिसे उर्जा की तरह ही नष्ट करना संभव नहीं.
बधाई सुंदर कविता के लिए.
bahut achcha likhe hain aap.....wah....
अद्भुत रचना पेश करने के लिए बढ़ाई स्वीकार करें प्रिया जी!
शब्दों का चयन बहुत ही उम्दा है..
ekdam tez-tarraar aur befikr kavita....achchi lagi.
संयोग से यह कविता पढ़ी और काफी पसंद आई,आपको बहुत बहुत बधाई,यह सच है की प्यार एक सैलाब की तरह उमड़ पड़ता है और यह जाति धरम नहीं जानता
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