जी नहीं चाहता कोई नज़्म लिखूं
किसी ख्याल की कोई आमद ही नहीं
ख्वाब आते भी हैं तो भूल-भूल जाते हैं हम
याद रखे उन्हें ऐसी नियामत भी नहीं
मौसमो के बदलने से
सबा के बहकने से,
बूंदों के बरसने से,
सुनहली धूप के गिरने से,
चांदनी के आने- जाने से,
मन नहीं मचलता अब,
तसव्वुरात में
कोई रंग नहीं उभरता अब|
ये सारे आलम मेरे
ये सारे आसार
अच्छे शगुन नहीं
लिखना अब मुनासिब नहीं
लज्ज़त नहीं
तासीर नहीं
ना! कोई तहरीर नहीं
ये अस्नामगरी* ना होगी हमसे
कौन जाने क्या लिखा है
इन तहरीरो की तकदीरो में
उस तरफ से कोई हवा नहीं बहती अब
इधर स्याही कुछ नहीं कहती अब
देखो! कोई सवाल ना करना हमसे
मेरे खोने की बात ना करना हमसे
कमबख्त!उम्मीद इस बाबत भी...
फ़िदा है हम पर
के सन्नाटे में ही कोई बात चले||
8 comments:
सन्नाटे में कोई बात चलना ...ग़मगीन सी है नज़्म ...सुन्दर अभिव्यक्ति
pata hai kai baar ham .khud me doobkar likhte hain ...kai baar khud se bahar hokar likhte hain ...par dono hi condition me apne aapko ko nahi rachte ..ek kirdaar ko rachte hai ....isliye likho ..us har kirdaar ke liye jo ..jo machalta hai bhi ..udaas bhi hota hai ..or kabhi kabhi khamosh bhi ....ham zubaan hai uski or najm uski jivit hone ka ehsaas :):)
खूबसूरत नज़्म.
लिखने का मन न हो तो आईने में देखिये,
कुछ नज्में चेहरे पर भी लिखी रहती हैं,
चलो उन्हें पढ़ लें.
सलाम.
kaun jane kya likha hai ...
koi sawaal n karna , tang aa chuke hain in sannaton se aur use sunne se
अक्सर कुछ नहीं कहना. बहुत कुछ कहने से बेहतर लगता है काश बिना कुछ कहे ही कोई सुन ले मन की बात
कमबख्त! उम्मीद इस बाबत भी...
फ़िदा है हम पर
के सन्नाटे में ही कोई बात चले.
कभी इन्ही सन्नाटों में जिंदगी कैद रह जाती है.
सुंदर एहसास लिए एह गुजारिश बहुत उम्दा है.
priyaa ji,
har baar ki tarah is baar bhi aapne teer nishaane pe maara hai...urdu ke alfaazon ka kya behtareen istemaal kiya hai aapne....aafareen!!!
aapki ye nazm jagjit sahab ki mashhoor nazm ki yaad dila gayi
Chahe kuch bhi ho sawalaat na karna unse..
mere bare mein koyi baat na karna unse...
Post a Comment