एक शाम कुछ यूँ हुआ
फलक समंदर में
तब्दील होने लगा
तब्दील होने लगा
बादल लहरों के माफिक
दौड़ -दौड़ साहिल तलाशने लगे
ज्वार-भाटे के गर्जन .....
आकाश में गश्त करने लगे
धरती की कश्ती में सिक्का फेंक
सूरज लुटने ही वाला था
के
चाँद ने आकर बाजी पलट दी
के
चाँद ने आकर बाजी पलट दी
(ना जाने कितनो की बालाएं अपने सर लेगा
ये चाँद)
आसमां ठहर गया
सागर नहीं बना,
धरती भी अपनी जगह कायम
पाताल होने से बच गई
अब के बार कुदरती
प्यादों ने कोई साजिश की तो
कसम से !
ए खुदा सुन !
क़यामत तेरे घर होगी
समझा दे अपनी कुदरत को
हम खुदाबन्द ..
इन्साफपरस्त लोग हैं
अदालत ज़मी पे बैठेगी
पेशी भी यहीं पड़ेगी
सिर्फ तारीखे मिलेंगी
लगाना फिर चक्कर पे चक्कर
केस फाइल नहीं किया है
मामला मुल्तवी हुआ...
बर्खास्त नहीं
ऑन रिकॉर्ड ना सहीऑफ रिकॉर्ड है
एक और बात -
सिर्फ तुम ही नहीं रखते बही खाता
फाइल री-ओपन यहाँ भी होती हैं
और सेटेलमेंट भी
करो अब चुनाव
क्या चाहते हो ?
16 comments:
is zameeni adalat mein kai log honge jinhe bahikhate kholne hain ... khuda ko sochne per majboor kar diya
ज़मीनी अदालत में तो न जाने कब फैसला मिले ...
नज़्म सुन्दर है
अब के बाद कुदरती प्यादों ने कोई साज़िश की तो....
जनाब साजिशें तो आप कर रही हैं, इतनी अच्छी रचना लिखने की और उसके बाद अपना दीवाना बनाने की, सच कहूं शब्द नहीं मिल पा रहे हैं तारीफ में आपकी, आपकी लेखनी में जो कशिश है वो मुर्दे में जान डाल दे, आफरीन....!
आज तो जरूर खुदा भी सोच मे पड गया होगा………किससे पंगा ले लिया …………वैसे अदालत अच्छी लगाई है मगर लगता है आज खुदा की शामत आई है………अभी जाकिर जी के ब्लोग पर ये पढ कर आई हूँ …………"ईश्वर, तेरी ये हरकतें अब बर्दाश्त के बाहर हो गयी हैं।" …………और अब यहाँ भी…………आज जरूर कहीं दुबक कर बैठ जायेगा।
चाँद मिया से किसी रोज़ किसी ने कहा था "हजूर आपका दिल बहुत बड़ा है"
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां
आपकी रचना और लिखने का अंदाज़ बहुत अच्छा है । वैसे कुदरत तो बड़ी इंसाफ पसंद है । कयामत तो तभी होगी, कहर तभी टूटेगा जब कोई संतुलन बिगड़ेगा । सोचने के लिए मजबूर करती अच्छी रचना के लिए धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ !
बहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें .
आइये हमारे साथ उत्तरप्रदेश ब्लॉगर्स असोसिएसन पर और अपनी आवाज़ को बुलंद करें .कृपया फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये
बहुत बढ़िया प्रस्तुति.
अब खुदा को भी आदम की अदालत में खड़े करने का वक्त आ गया है.
कहीं हम ही तो नहीं अपने फर्जों से कन्नी काट रहे.
सलाम.
wooowwww ...poori najm bahut badhiya hai .......vo chaand k khyaal tak njm ko padhna bhi adhoora nahi lagta :):) magar poori njm gazab hai ek dam :)
गुलज़ार साब कि वो नज़्म याद आ गई...
"पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी..."
bahut khoobsurat.
बहुत खूब ......!!
लाजवाब लेखन ......!!
ख्याल और ज़ज्बात दोनो ही उम्दा...बेहतरीन नज़्म!!
डा.अजीत
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gr8 doing !!!
बहुत - बहुत शुक्रिया
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आज तुम्हारी बहुत सी कविताएं पढ़ी...बेहद प्यारा लिखती हो. :)
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