बहुत दिन हो गए हैं
झगडा किये उससे
ढूढता रहता हूँ
लड़ाई के बहाने अक्सर
सुबह ही टी-सेट का नया कप तोडा,
गीला तौलिया बिस्तर पर छोड़ा,
बाथरूम में साबुन का झाग फैलाया,
पोंछे के वक़्त चप्पल के साथ अंदर आया,
गार्डनिंग के बहाने गमला तोडा,
टेस्टी ब्रेकफास्ट प्लेट में आधा छोड़ा
दोपहर के खाने पर भी मुहं बिचकाया
कमरे में उसके घुसते ही
रिमोट पर हाथ अजमाया
इतने पर भी वो कुछ नहीं बोली
स्टाइल से पूछा " एवरीथिंग इस नोर्मल
तुम्हारे टाइप की बनाने की कोशिश कर रही हूँ
चहकती रहती हूँ ना दिनभर
संजीदा रहकर बुद्धिमान बन रही हूँ
मेरी बक-बक से तुम्हारा दिन ख़राब होता है ना
आज खामोश रहकर तुम्हारा साथ दे रही हूँ
ओहो! तो ये एक हफ्ते पुरानी कहानी है
इसी वास्ते रूठी-रूठी सी मेरी रानी हैं
सोचता हूँ ..इगो परे कर कह ही दूं
के ये बदलाव मुझे अच्छा नहीं लगता
तेरे गुस्से, बिन घर, घर नहीं लगता
इसी वास्ते रूठी-रूठी सी मेरी रानी हैं
सोचता हूँ ..इगो परे कर कह ही दूं
के ये बदलाव मुझे अच्छा नहीं लगता
तेरे गुस्से, बिन घर, घर नहीं लगता
औ डांट बिन सन्डे, सन्डे नहीं लगता
शाम साथ में आउटइंग का प्लान करता हूँ
वापस आकार फिर से लड़ता हूँ
सच्ची! कितने दिन हो गए हैं दोस्तों !
उसके गुस्से की बरसात से भीगा नहीं हूँ मैं
शाम साथ में आउटइंग का प्लान करता हूँ
वापस आकार फिर से लड़ता हूँ
सच्ची! कितने दिन हो गए हैं दोस्तों !
उसके गुस्से की बरसात से भीगा नहीं हूँ मैं
" प्रिया "
25 comments:
हा.हा.हा.मजा आ गया पढ़ के
ऐसा बदलाव भी चुभता हें.
बहुत खूब.
bahut khoob
वाह क्या खूबसूरत खयाल है
गुस्से की बरसात में भीगना भी शायद उतना ही सुखद होता है जितना सावन के बारिश में जानबूझ कर अनायास भींगना.
बहुत ही सुन्दर रचना
wooowwww ..soo sweeet yaaar :)...ese alag alag se khyaal tumhe kaise aa jate hain .....nywys ..bahut sunader kavita hui ..loved it :)
चुटकी भर नमक ही ज़रूरी होता है,
वरना जीवन कितना भी सुंदर हो,
लावण्य से रहित होता है ।
हाँ, बहुत सही लिखा है आपने !
प्रिया जी,
नमस्ते! आशा करता हूँ लखनऊ में सब ठीक होगा और आप भी कुशल मंगल होंगे!
अब आपकी रचना की बात करते हैं, हर बार की तहर आपने इस बार भी बहुत ही कमाल की रचना लिखी है!
व्यंग और संजीदगी को जिस तरह से आपने पेश किया है, मीठी मीठी नोक-झोंक, रूठना-मनाना, वाह वाह वाह, क्या बात है!
सच में कभी कभी हम ऐसा कर जाते हैं जिसका प्रभाव सामने वाले पे कितना गहरा हो जाता है, सोच भी नहीं सकते!
आपकी इस रचना ने सुबह सुबह दिन की शुरुआत अच्छी कर दी! शुक्रिया!
Sachhi,
bahut hi Achhi.
Really Very touching.
Thanks.
Sachhi,
bahut hi Achhi.
Really Very touching.
Thanks.
गोया गुलज़ार किताबो के टेक लगाये कमरे में है शायद ....आखिरी लाइन ....उसकी तसदीक करती है ....
beautiful ......
and yes still your blog is angry with mozila......
प्यार में डांट ... सन्डे सन्डे लगता है, घर जन्नत ! तो उठाओ गिला तौलिया और बाहर कर दो
वाह्……………ये अन्दाज़-ए-बयाँ तो गज़ब का है…………ये मीठी मीठी तकरार और फिर मनुहार यही तो ज़िन्दगी के खूबसूरत लम्हे होते हैं और इन्हे बहुत ही खूबसूरती से संजोया है आपने…………बहुत खूब्।
ha ha.. bhut mazedaar aur gahri.
WOW !!
So Beautiful.....
बहुत ही शानदार कविता... बहुत खूब्।
सुंदर ख्याल ।
priyaa behn aaadaab aapki yaad krne kaa andaaz or fir mnaaane kaa anaaz donon alfaazon ki jadugri or jzbaat ki akkasi he jo kisi or ke bute ki baat nhin bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan
wow... क्या खट्टी-मीठी, प्यार भरी तक़रार है... पढ़ के मन होने लगा किसी के प्यारे से गुस्से की बरसात में ऐसे भीगने का... सच्ची :)
बहुत खूब....ऐसा परिवर्तन भी नहीं भाता..
I have to say- वापस आकर फिर लड़ता हूँ|
very nice
बहुत ही बेहतरीन ख्याल .....!!
पति- पत्नी की नोक झोंक को बखूबी शब्दों में बांधा है आपने .....
हास्यरस की सुंदर कविता .......!!
ये बदलाव मुझे अच्छा नहीं लगता
तेरे गुस्से के बिना घर घर नहीं लगता.
...वाह क्या बात है.
प्रश्न-पत्र गढ़ती रहती है
वह मुझसे लड़ती रहती है.
यह रोज़ रोज़ की कहानी है ...।
Bahut achha likha hai...
Very nice :)
Simple words and good topic!
Regards,
Dimple
hahaha.......a b'ful post.
Wah Priya ji kayal ho gaya aapki kavitaon ka, choti choti baaton se kitna gahra arth nikala hai aap ne......likhte rahiye........hum kadradaano ke liye.......
Deepak
9044316656
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