Wednesday, July 7, 2010

प्रकृति, पुरुष और एक प्रयोग




सोचती हूँ

आज डूबने न दू सूरज को

साँझ साथ न काटूँगी

आज की रात





मैं तेरे खातिर

अपना घर , परिवार

सहेलियां, बचपन सब

त्यागने वाली हूँ





तू मेरे खातिर

एक रात नहीं ठहर सकता?





ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ?

लोग कहेंगे

एक बार सूरज ही नहीं डूबा

चाँद ही नही निकला,

सितारे नही चमके आसमां पर





कुछ अध्यात्म से जोड़ेंगे

कुछ वैज्ञानिक रहस्य टटोलेंगे

फिर चर्चाओ का बाज़ार गर्म होगा

तुझ पर नया शोध होगा

ज्योतिषो की दुकान चल निकलेगी

बस ग्रहो के चाल बदलेगी





नाम तो है ही तुम्हारा

और प्रसिद्धी मिल जायेगी

मेरी बात जो मानोगे

तो चैनल्स को भी टी०आर०पी० मिल जाएगी




मैं जो कल थी

वही रह जाऊंगी

जननी तो स्रष्टी ने ही बनाया

तुम गर चाह लो तो .........

नियंत्रिका भी कहलाऊंगी






एक बार नैसर्गिक नियम तोड़ कर देखो ना

थोडा सा जोखिम लेकर देखो ना

तुम पुरुष हो और मैं प्रकृति

हम दोनो एक दूजे से ही है

तो फिर

मेरी बात मानने से इनकार क्यों ?




सुनो ना!

रुक जाओ

हमेशा तो सोचते हो

ब्रहमांड के बारे में

आज मेरे और अपने खातिर

अंधेरे को रोशन कर दो

चौबीस घंटो का उजाला कर दो





वो भेड़ चाल कब तक चलोगे?

कुछ नया प्रयोग करके देखो ना

ना डूबो आज पश्चिम में

एक रात तो धूप खिलाकर देखो ना




"प्रिया"

21 comments:

Jandunia said...

खूबसूरत पोस्ट

HBMedia said...

BAHUT BADHIYA ...UMDA LEKHAN
(Gaurtalab hai)
my blog (www.gaurtalab.blogspot.com)

Vandana Singh said...

awesommm ! bahut sunder or pyari si request hai ..bahut khoob prayog kiya yaar :)

Udan Tashtari said...

बहुत गहरी रचना! बेहतरीन!

Vinay Kumar Vaidya said...

तब आप दावे से कह सकेंगी,

'' तुम आ सको तो बढ़ा लें शब को कुछ और भी,
अपने कहे में सुबह का तारा है, -इन दिनों !!''
Nice !!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

priyaa ji...

pata nahi kis tarah aap apne khayaalon ko kaagaz pe utaar ti hain...mantra mugdha ho kar bas aapki baaton ko baar baar padhne ka mann karta hai...

magical composition!

रश्मि प्रभा... said...

are waah........yahan hindi se jyada asardaar shabd "excellent " hi chalega

रश्मि प्रभा... said...

are waah........yahan hindi se jyada asardaar shabd "excellent " hi chalega

vandana gupta said...

क्या खूब लिखा है………………बेजोड,अद्भुत अकल्पनीय्।
निशब्द कर दिया।

रचना दीक्षित said...

बहुत अनूठी पर सत्य. जब हर कोई कुछ नया करने की होड़ में है फिर सूरज क्यों नहीं ????

डॉ .अनुराग said...

सिर्फ जरा सी ख्वाहिश ...........यूँ भी दोपहर में बागी हो जाता है सूरज.....अब ओफिसियली हो जाने दो

डिम्पल मल्होत्रा said...

नये बिम्बों से सजी बड़ी मासूम सी ख्वाहिश है..

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Bahut sundar.

सम्वेदना के स्वर said...

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा... क्या गुज़ारिश है सूरज से...

अनिल कान्त said...

kya baat hai !!
ek baar phir se padhta hun....

richa said...

एक बार नैसर्गिक नियम तोड़ कर देखो ना
एक रात तो धूप खिलाकर देखो ना

बस "इतनी" सी ख़्वाहिश :)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

चाँद और चांदनी से तो कवियों ने बहुत आरजू मिन्नतें करीं अब आपकी नजर सूरज पर लगी है तो डरता हूँ कहीं वह आपके झांसे में आ ही न जाय..!

स्वाति said...

बेहतरीन!

हरकीरत ' हीर' said...

हौंसला बनाये रखिये .....क्या पता सच में सूरज आपकी बात मान जाये ......

इन्तजार रहेगा ......!!

Avinash Chandra said...

sooraj sun hi lega... yakinan

khubsurat :)

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

पुरुष के प्रति प्रकृति की मनुहार ..........
लेकिन प्रिया जी !यदि भारतीय दर्शन की बात करें तो प्रकृति प्रसवधर्मिणी किन्तु चेतनाशून्य है...जबकि पुरुष अप्रसवधर्मी किन्तु चेतनावान. अब ज़रा इसकी तुलना न्यूक्लियर फिजिक्स से करेंगी तो बात बिलकुल स्पष्ट हो जायेगी. न्यूक्लियस की सीमा में बंधे प्रोटोंस अपने नियमों में ज़रा भी शिथिलता करेंगे तो परमाणु के अस्तित्व पर ही बन आयेगी. इसीलिये वे कभी भी इलेक्ट्रोंस की बात नहीं मानते....उधर इलेक्ट्रोंस हैं कि बोंड बनाने के लिए उतावले .....बोंड्स बनेनेग तभी तो नया अणु बनेगा और सृष्टि आगे बढ़ेगी. पुरुष अपनी सीमा के भीतर रहने के लिए प्रतिबद्ध है. उसे बहकाया नहीं जा सकता .......
परमाणु अर्धनारीश्वर है....धनावेषित पुरुष और ऋणावेषित प्रकृति का युग्म.
बहरहाल आपकी रचना बहुत प्यारी लगी ..........गुलाब की पंखुड़ियों पर बिखरी ओस की बूंदों की तरह मासूम सी.