लखनऊ की
तंग गलियों से गुज़रते हुए
दो शोहदों को
अदब से लड़ते देखा जब
तो उनकी इस तकरार पर
प्यार आ गया।
उनका तर्जुमा
कितना सच्चा
रवाँ रवाँ सा था
वरना
इस जहाँ में
सच तो सिर्फ़ एक लफ्ज़ है
और झूठ कारोबार,
एक खोखली बुनियाद के साथ।
शायद !
इसी वजह से हर साल...
इमारते ढह जया करती है ईंटो की ...
और रिश्तो की भी.....
अजीब है! दोनो सूरतों में
आँखें ही नम होती है
दिल नही॥
"प्रिया चित्रांशी "
चित्र : गूगल से
चित्र : गूगल से
13 comments:
शोहदो की अदब को एक अदबकार ही अदब का दर्जा दे सकता है. और फिर लखनऊ तो अदब के लिये ही तो जाना जाता है.
क्या खूब लिखा है
कवि मन हृदय नम होती है तभी ऐसे बंद फूटते हैं.
धन्यवाद.
अब लोग रिश्तों की हक़ीकत को काफ़ी हद तक समझने लगे है..बढ़िया प्रस्तुति..धन्यवाद
बहुत खूब ..बहुत पसंद आई आपकी यह रचना शुक्रिया
aankhe bewajah nam nahi hoti.chot dil pe hi lagti hai rishte tootne ki bas wo rota bhi hai bas ansu aankh se nikalte hai.imarate dhah jati hai to fir se ban jati hai kya rishte bhi??
bahut sunder bhaav aur sunder abhivyakti...
Saade lagzon men sundar si rawaanee.
Badhaayee.
Science Bloggers Asso. pe aapke comment ke liye shukriya. Kripya apna mail id bhej den, aapko Nimantran bhej diya jaayega.
Zakir Ali Rajnish
zakirlko@gmail.com
सार्थक .......बहुत खूब लिखा है ........ अच्छी रचना .....
इसी वज़ह से हरसाल
इमारतें ढह जाया करती हैं ईटों की
और रिश्तों की भी
---बहुत खूब..
--दिल की बातें आँखें ही बयां करती हैं..!
सच कहा प्रियंका, चाहे ईंट-पत्थर की इमारत टूटे या दिल या किसी के ज़िन्दगी की डोर, कुछ पल के लिए आंसू आते हैं और बस फिर ज़िन्दगी आगे बढ़ जाती है.
शुक्रिया प्रिया जी और देर से जवाब देने के लिए सॉरी, खुशकिस्मत तो मैं हूँ जो आपकी स्नेहिल दुआएं पाती हूँ ,जो अच्छा होता है उसे सब अच्छे लगते हैं तो भी इतने अच्छे कमेन्ट के लिए thanx .
और हाँ आपका काम मुझे याद है .वो क़र्ज़ नए साल में ज़रूर अदा होगा . be in touch
tarjuma accha hai
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत बधाई .....
Aankhen hi nam hoti hain dil nahin...
Bahut khoob..
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