Sunday, July 19, 2009

"दिलनशी कुमुदनिया"

आज काफी दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग परआगे भी लंबे अन्तराल के बाद मुलाकात होगी। कुछ व्यस्तता अधिक रहेगी

बरसात का मौसम है प्रकृति से हमारा विशेष लगाव किसी से छुपा नही है ये अलग बात हैं कि बादल कुछ ख़फा-ख़फा से हैं ....लेकिन इस दौरान प्रकृति के ऐसे नज़ारे देखने को मिले कि कुमुदनी का हाल- -दिल लेखनी से फूट पड़ा आप लुत्फन्दोज होइए इनके साथ .... हम फिर हाज़िर होते हैं कुछ अरसे बाद






हरे- हरे पत्तो के दल,
उन पे बिखरी ओंस,
गुलाबी नाजुक प्रहरियाँ,
रही है डोल-डोल,
हाय रे! ये दिलनशी कुमुदनिया,
छेड़े है मन के तार,
अब कैसे कोई भंवरा,
बांधे मन की डोर


जल के बीच खिला- खिला यौवन छलक उठा ,
पवन का मन मचल उठा,
बेईमान! हौले से छू उठा,
पवन की छुअन एक सिरहन से फैला गई,
कुमुदनी इठला कर हवा संग हिलोर लगा गई







मधुकर ये दृश्य देखकर ठगा सा रह गया,
मंत्रमुग्ध हो, कुमुदनी के रूप- रंग पर खिंचा चला गया,
संध्या सुन्दरी भी दस्तक थी दे चुकी,
कुमुदनी भी सांझ के इशारे को समझ चुकी,
खिली-खिली पंखुडिया कुमुदनी ने समेट ली,
प्रेयसी के जाल में भंवरा था फंस चुका





पहले तो भंवरा बहुत घबराया,
कुमुदनी पे फ़िदा होकर पछताया,
फिर उसने कुमुदनी पर अपने प्रेम बाण छोड़े,
सारे ग्रंथो के सार निचोड़े,
कोमल ह्रदय कुमुदनी, तुंरत ही पसीज गई,
भंवरे के कैद मुक्ति का उपाय सोच गई


नाजुक सी कोमल पंखुरिया...
भँवरे ने भेद दी,
खुद को आहत करा कर...
कुमुदनी ने वफ़ा की मिसाल दी,
कैद मुक्त होकर भंवरा तो उड़ चला ,
लेकिन कुमुदनी पर प्यार का रंग चढ़ चला




प्रभात फिर हुआ,
रश्मि फिर पड़ी,
प्रकृति नियम जान कर,
कुमुदनी खिल उठी,
पंखुरियों पे उसके कल का वो चित्र था.
हर एक दल पर भँवरे का दिया छिद्र था.


लोगों ने कहा की खूबसूरती पे दाग था,
लेकिन वो थी खुश बहुत,
क्योकि उसका मन साफ़ था।




Monday, July 6, 2009

"आदमी का प्राइवेटाईजेसन"





जीवन की आपा-धापी में दौड़ता आदमी,
लक्ष्य पर लक्ष्य साधता आदमी,
सफलता पे सफलता चढ़ता आदमी,


पर्वतों से ऊँचे ख्वाब बनाता आदमी,
आसमाँ में सुराग करने को बेचैन आदमी,
पर ईमान से महरूम आदमी,


दुनिया की भीड़ को चीर कर आगे बढ़ता आदमी,
एक आदमी तो शिकस्त देता दूसरा आदमी,
एहसानों का एहसास करवाता आदमी


पैसो के ढेर पर बैठा आदमी,
सम्मानित आदमी, सफल आदमी,
सबकुछ पाने की चाह में खुद को खोता आदमी,
पर शांति के लिए तरसता आदमी,


किसी ने पूछा ------
क्या पाना चाहते हो?
कहाँ जाना चाहते हो?
ज्यादा पाओगे तो कहा जाओगे?
अल्लाह के द्वार पर इंसान कहलाओगे,
फ़रिश्ता नहीं बन जाओगे..


खुद के लिए जिया आदमी,
खुद को सजाता आदमी,
खुद पर लुटाता आदमी ,
"प्राइवेट आदमी " बिल्कुल प्राइवेट


एक दिन अचानक दिवंगत हो गया,
एक बेटा था, "प्राइवेट"
शोक मनाया 'प्राइवेट'
अंतिम संस्कार की बारी आई,
प्राइवेट बेटे ने पब्लिक बुलाई


पब्लिक से एक सज्जन बाहर आये,
बोले, हम क्विक एंड फास्ट सर्विस प्रोवाइडर हैं,
बस पंद्रह मिनेट में फ्युनेरल हो जायेगा,
और फ्युनेरल सर्टिफिकेट आपको मेल कर दिया जायेगा


बेटा क्विक डिसिजन मेकर था,
डिसीजन लिया, कांट्रेक्ट दिया,
फ्युनेरल प्राइवेट लिमिटेड को फेम मिला,


कुछ लोग जो पके आम थे,
एस.एम.एस. ई-मेल, फैक्स का सहारा लिया,
अग्रिम बुकिंग का निवेदन किया


फ्युनेरल प्राइवेट लिमिटेड के बोर्ड पर एक वाक्य और जुड़ गया,
प्रिवीयस बुकिंग इस अल्सो अवेलेबल,
अल्लाह हैरान था,
होमोसेपियांस के लिया परेशान था,


कुदरती वैज्ञानिक मैनुफ़ैक्चरिंग डेफेक्ट ढूँढ रहे थे,
ज़मीनी आदमी मुस्कुराता रहा .....