
यदि परमपिता पर भरोसा हैं, और आप उसके असतित्व को स्वीकारते है , तो ये फरियाद आपके दिलों पर दस्तक जरूर देगी । और कुछ पल के लिए ही सही, इसी बहाने आप भगवान् जी को याद करेगे । फिर देर किस बात की , शामिल हो जाइये, मेरे साथ इस अनोखी गुफ्तगू में।
रोज़ आती हूँ दर पे तेरे हाज़िरी लगाने,
देखते तो रोज़ हो मुझको,
जब मैं मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए
एक नज़र देखकर तुमको, आख़िरी सीढ़ी को झुककर चूमती हूँ,
नज़रे मिलती हैं तुमसे,
एक नज़र मैं तुम्हे देखती हूँ, और तुम मुझे,
जानती हूँ, रोज करते हो मेरे आने का इंतज़ार,
सच बोलूं तो मेरे अंदर भी तुमसे मिलने की ख्वाहिश रहती.
नही आती तो लगता हैं कुछ अधूरा रह गया ,
जो भी माँगा हैं, चाहा हैं,
थोडी से देर से ही सही , और कभी -कभी तो तुंरत,
सबकुछ दिया हैं तुमने ,
मैने भी जलाए हैं दिए बदले में,......

पर इस बार देर कर रहे हो ......
समझदार को नासमझी अच्छी नहीं लगती ,
वैसे ही, जैसे नास्तिक को पूजा सच्ची नहीं लगती,
एक बात और ......
मेरा इम्तहान लेने के बारे में सोचना भी मत ....
रोज़ लेती हैं जिंदगी ऐसे इम्तहान,
कभी पास होती हूँ , तो कभी फ़ेल....

मेरे सब्र की इन्तहा मत होने देना ...
बीच राह में ऊँगली पकड़कर सही दिशा का इशारा जो कर तो एक बार,
ख़त्म होते विश्वास को सहारा मिल जाएगा ,
या यूं कह लो मांजी को किनारा मिल जाएगा,
तुमको भी तो भक्त दोबारा मिल जाएगा,
चुप क्यों हो ? कुछ बोलते क्यों नहीं ?
सोचते हो ........ सौदा कर रही हूँ..
उहूं ...क्या करूँ ? तजुर्बा ले रही हूँ
तुम्हारे साथ भी जिंदगी का ...........................