Wednesday, December 22, 2010

उम्र

ये ना कहना कभी
के मैंने तुम्हे
तन्हा छोड़ा

याद है साथ चलते चलते
राह में अक्सर
मैं रुक जाया करता था
तो
तुम नाराज़ हो जाए करती थी


हर कदम पर मैने
ना जाने कितनी नज्में बोई हैं
हर नज़्म हाथ थामेगी


कुछ डेलिकेट हैं
कुछ गबरू ज़वान सी
कुछ शज़र का रूप ले चुकी होंगी अब तक
कुछ नज्में उम्मीद से भी हो शायद


ये माथे पर शिकन और लबों पे मुस्कुराहट
बात पूरी होने दो
फिर पोज़ देना


दरअसल वो नज्में नही है
जीरोक्स करके रखी है उम्र मैने

ज़ज़्बातों को छोड़ो
प्रॅक्टिकली सोचो
तो अब इस से ज़्यादा
मै
क्या दे सकता हूँ तुम्हे?


रोना मत
तुम्हारे आंसुओं से
ये चायनीज़ प्लांट भी नही फलने वाला


जानती नही क्या
आंसुओं में सॉल्ट होता है
औ मिट्टी में नमक हो तो प्लांट
मुरझा जाता है

हमारे रिश्ते में नमक ज़्यादा था शायद

चाय में चीनी कितनी लोगी ?
ओह! तुम तो विदाउट शुगर लेती हो

Saturday, December 18, 2010

रिप्लेस

रोज़ रोज़ बात करूँ भी तो क्या ?
बस यही सोच चुप हूँ
हिचकियाँ नहीं आती मुझे
टेलीपैथी भी गई काम से
तुम्हे स्पेस चाहिए था ना
लो दिया मैंने
उम्र भर का स्पेस

एक बार वापस आ
देखना ज़रूर
तुम्हे किसने रिप्लेस किया है ?

Wednesday, December 15, 2010

आदमी सा वक्त

कितनी छिछली और सतही होती हैं
दीवारे वक़्त की
कभी उनमें कैद रुका सा आदमी
कभी बहता आदमी
  

देखा तो होगा तुमने
दीवारों पे उड़ता आदमी
आदमी के मायने वक़्त है
या वक़्त के मायने आदमी 

दगाबाज़ वक़्त या आदमी
मानो  न मानो
ये वक़्त आदमी से कमतर नहीं