ये ना कहना कभी
के मैंने तुम्हे
तन्हा छोड़ा
याद है साथ चलते चलते
राह में अक्सर
मैं रुक जाया करता था
तो
तुम नाराज़ हो जाए करती थी
हर कदम पर मैने
ना जाने कितनी नज्में बोई हैं
हर नज़्म हाथ थामेगी
कुछ डेलिकेट हैं
कुछ गबरू ज़वान सी
कुछ शज़र का रूप ले चुकी होंगी अब तक
कुछ नज्में उम्मीद से भी हो शायद
ये माथे पर शिकन और लबों पे मुस्कुराहट
बात पूरी होने दो
फिर पोज़ देना
दरअसल वो नज्में नही है
जीरोक्स करके रखी है उम्र मैने
ज़ज़्बातों को छोड़ो
प्रॅक्टिकली सोचो
तो अब इस से ज़्यादा
मै
क्या दे सकता हूँ तुम्हे?
रोना मत
तुम्हारे आंसुओं से
ये चायनीज़ प्लांट भी नही फलने वाला
जानती नही क्या
आंसुओं में सॉल्ट होता है
औ मिट्टी में नमक हो तो प्लांट
मुरझा जाता है
हमारे रिश्ते में नमक ज़्यादा था शायद
चाय में चीनी कितनी लोगी ?
ओह! तुम तो विदाउट शुगर लेती हो
Wednesday, December 22, 2010
Saturday, December 18, 2010
रिप्लेस
रोज़ रोज़ बात करूँ भी तो क्या ?
बस यही सोच चुप हूँ हिचकियाँ नहीं आती मुझे
टेलीपैथी भी गई काम से
तुम्हे स्पेस चाहिए था ना
लो दिया मैंने
उम्र भर का स्पेस
एक बार वापस आ
देखना ज़रूर
तुम्हे किसने रिप्लेस किया है ?
Wednesday, December 15, 2010
आदमी सा वक्त
कितनी छिछली और सतही होती हैं
दीवारे वक़्त की
कभी उनमें कैद रुका सा आदमी
कभी बहता आदमी
दीवारे वक़्त की
कभी उनमें कैद रुका सा आदमी
कभी बहता आदमी
देखा तो होगा तुमने
दीवारों पे उड़ता आदमी
आदमी के मायने वक़्त है
या वक़्त के मायने आदमी
दगाबाज़ वक़्त या आदमी
मानो न मानो
ये वक़्त आदमी से कमतर नहीं
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