Sunday, November 1, 2009

बूँद





(एक साहित्यिक वेबसाइट पर पूर्व प्रकाशित इस कविता का प्रकाशन आज हम अपने ब्लॉग पर कर रहे है आप सभी का शुक्रिया जो हमेशा अपनी अमूल्य राय से हमारा मार्गदर्शन करते है और उत्साहवर्धन भी हमको इस बात का दुःख भी है कि हम आप सभी के ब्लॉग पर आकर अपनी प्रतिक्रिया नही दे पाते......फ़िर भी आप हमें अपना प्यार - आर्शीवाद देते है और सुझाव भी उम्मीद है कि ये रिश्ता यूँ ही बना रहेगा ....... )







अंजाम से बेखबर बूँद जब आसमां से चलती है
कभी ज़मी उसकी राह तकती है,
तो कभी सीप उसके आने से डरती है,
फ़ना होना तो उसका मुक्कदर है,
फिर भी जिंदगी से प्यार करती है।



गिरी एक पत्ते पे तो शबनम बनी,
शायर की नज़र पड़ी तो ग़ज़ल बनी,
सूरज ने जो रोशनी से जलाना चाहा
बन तारे उसने धरा को सजाना चाहा।



नन्ही सी उम्र में सूरज को चुनौती दे दी,
जाते-जाते जहाँ को निशानी दे दी,
समंदर के पानी में मोती बन वो रहती है,
किसी के आँखों में दरिया बन वो बहती है।



कलियाँ ओस चख चटक जाती है,
तितलियाँ रस पी जवां हो जाती है,
पेड़ नई कोंपले रख नहाने को तैयार है,
बादल फिर धरा को भिगोने को बेताब है।



बूँद पलकों पे आंसू सजा बाबुल से जुदा होगी फिर,
सैया संग, उमंग ले भारी मन से विदा होगी फिर,
"धरा ससुराल" बहार संग स्वागत के लिए तैयार है,
एक नव-वधु का आज फिर दूसरे जहाँ में दीदार है ।


21 comments:

M VERMA said...

बेहद खूबसूरत रचना. अनेक रूप में बूँद की परिणिति वाकई दर्शनीय है.

दिगम्बर नासवा said...

गिरी एक पत्ते पे तो शबनम बनी ........

बहूत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं ये .......... ओस की एक बूँद भी कितने रूप ले लेती है ..... बस देखने वाले की नज़र चाहिए .........

Vinay said...

It's nice poem.

Unknown said...

अतीव मधुरिम
अतीव कोमल
अतीव सौम्य
____________सुखद अनुभव

आपके काव्य को बांचने का

हरकीरत ' हीर' said...

अंजाम से बेखबर बूंद आसमां से जब चलती है
कभी ज़मीं उसकी राह तकती है ,
तो कभी सीप उसके आने से डरती है
फना होना तो उसका मुक़द्दर है
फिर भी ज़िन्दगी से प्यार करती है

fabulous ....!!

नन्हीं सी उम्र में सूरज को चुनौती दे दी
जाते जाते जहां को निशानी दे दी
समंदर के पानी में मोती बन वो रहती है
किसी के आँखों में दरिया बन वो बहती है

excellent ..........!!
यहाँ थोडा सा देखें .....किसी की आँखों से ....
अन्य अंतरों को भी ' ती है' में ही खत्म करती तो लय बनी रहती ...
मसलन ...'बन तारे धरा पे बरसती है'.. या कुछ और .....

पर बहुत ही बेहतरीन नज़्म ...आपकी सोच की दाद देती हूँ.....!!

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

हिन्दी चिठठाकारीता फले-फुले!!
आपका लेखन प्रकाश की भॉति दुनिया को आलोकित करे!!
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जय ब्लोग- विजय ब्लोग
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प्रियाजी!!
अति सुन्दर कविता है जी!!
बार बार पढने को जी करता है।
आभार/मगलभावनाओ सहीत


♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
हे प्रभू यह तेरापन्थ को पढे
अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी

मुम्बई-टाईगर

अनिल कान्त said...

कविता निसंदेह बहुत बेहतरीन है
मुझे बहुत बहुत बहुत पसंद आई
प्रकृति से जुडी हुई ....

रश्मि प्रभा... said...

ओस की नन्हीं बूंद का भाग्य....अलग-अलग सांचों में अलग-अलग रूप ,
हर रूप को संवारा है,उसे महसूस किया है और हमारे दिल के सीप में
बंद कर दिया है.........

daanish said...

fanaa hona to uska muqaddar hai
phir bhi zindgi se pyaar karti hai

inhi panktiyo mein
aapne jeevan ka falsefaa byaan
kar diyaa hai
sashakt lekhan...
saarthak rachnaa...
b a d h a a e e !

सुजीत कुमार said...

बूंद की अनेक रुप में की गई व्याख्या वाकई पढ़ने लायक है...इसी तरह की रचनाएं प्रकाशित करती रहिए मैडम...

Sudhir (सुधीर) said...

वाह !! फना होना तो उसका मुक़द्दर है
फिर भी ज़िन्दगी से प्यार करती है

सुन्दर अभिव्यक्ति, बड़े प्यारी बात कह दी आपने....साधू!!

वाणी गीत said...

फना होना तो उसका मुकद्दर है फिर भी जिंदगी से प्यार करती है ..नन्ही सी उम्र में सूरज को चुनौती देते है ...बूँद की जिंदगी की दास्तान को प्रस्तुत करती बहुत ही खुबसूरत रचना ..!!

शरद कोकास said...

बहुत सुन्दर चित्र है एक कविता को इस तरह चाक्षुस भी होना चाहिये ।

Science Bloggers Association said...

बहुत ही प्यारा है यह नीड।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

"अर्श" said...

jahan pahale se hi aadarniya muflis ji aur harkirat mam ne aapki itani tarif ki hai wahaan aur kuchh kahane ko kya rah gayaa hai... main to pahali line se hi bichh gayaa kya khub baat ki hai in betartib bundon ke baare me aapne .... iski khub kathaa ki hai aapne behad khubsurat nazm hai ,,,,, badhaayee ji


arsh

Ashish Khandelwal said...

खूबसूरत भाव पिरोए हैं आपने

हैपी ब्लॉगिंग

डिम्पल मल्होत्रा said...

awesome...suraj ko chounoti deti boondh ki kahani....bolti batein karti lagi boondh....

डिम्पल मल्होत्रा said...

or sabhi boondein wapis zamee pe nahi aa sakti kuch asman me hi rah jati hai....sari barish kaha zameen pe padti hai.....

!!अक्षय-मन!! said...

एक से बड़कर एक मुक्तक हैं प्रिया जी वाकई आपने प्रक्रति को जिस तरहां से अपने शब्दों से निखारा है वो हर कोई नहीं कर सकता आप बहुत अच्छा लिखती हैं..........आपकी रचना को देख अपनी कुछ पंक्तियाँ याद आ गई........
हर रिश्ता यहाँ खून से नहीं पनपता
देखो प्रक्रति की गोद मई पलता पत्ता


माफ़ी चाहूंगा स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण काफी समय से आपसे अलग रहा

अक्षय-मन "मन दर्पण" से

Murari Pareek said...

adbhut rachna!!!

Rajat Narula said...

bahut sunder rachna hai....