Sunday, October 25, 2009

लकीरें





लकीरों और तकदीरों में अजब मेल होता है
हमारे हाथो में भी मुकम्मल खेल होता है
एक पतली सी रेखा बदलती है जिंदगानी कर रुख
क्या कोई सच भी इतना संगीन होता है



अगर मै कहूं
मैंने लकीरों को बोलते देखा
तकदीरों को तौलते देखा
लोगों को हास-परिहास का मुद्दा मिल जायेगा
कुछ लोगो का वक़्त मुस्कुरा कर कट जायेगा



एक बार ह्रदय रेखा ने भाग्य रेखा पर कसीदा कसा
तेरे भरोसे कुछ को समंदर मिला
और कुछ को पीर का बवंडर मिला



भाग्य रेखा चुप रहे ऐसा मुमकिन था
उसने भी दिल की लकीर पर तंज कसा
तुमने भी तो अफरा- तफरी मचाई है
सदा हकीक़त से नज़रे चुराई है
मोहब्बत के खेल खेले हैं
जुदाई के दंश झेले हैं
भावो के समंदर दिखाए हैं
जज़्बातों के सैलाब आये हैं


तेरे ही कारण दिल हमेशा मात खाया है
अक्सर लोगो को हार्ट अटैक आया है



मस्तिष्क रेखा सुन चुप रह सकी
बात-चीत की महफ़िल में उसने शिरकत की
पहली बार उसने दिल का हाथ थामा
दिल के सारे व्यवहारों का कारण खुद को माना
वैज्ञानिक चुनातियों के तर्क दे डाले
दिल के सारे हाल दिमाग से कह डाले



जीवन रेखा ने सारे वक्तव्यों को ध्यान से सुना,
खामोश तंत्रा में ही एक जाल बुना
जीवन की घड़ी एकाएक थम गई,
कड़ियाँ रफ्ता-रफ्ता बिखर गई
अब कोई इल्जाम था
सामे
शाकी
सुखनवर था



जो मरा था वो कभी जिया ही नहीं
जीवन का रस उसने कभी पिया ही नहीं
मौत ने आकर मुन्सफी कर दी
अब मर कर जियेगा कुछ दिन,
कुछ रिश्तो में
ज़ुबानो में
यादों में


24 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत खूब!! हस्तरेखा ज्ञान को कविता में कह डाला।बहुत बढिया।बधाई स्वीकारें।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut achchi lagi yeh kavita..... shabdon ko bahut hi khoobsoorti se piroya hai aapne.....

अनिल कान्त said...

क्या खूब कहती हैं आप असल बातों को कविता के माध्यम से

"अर्श" said...

achhi baat ki hai aapne.. achhe taal-mel ke saath achhi baat ... kahan hain aap aajkal... kam dikh rahi hain... badhaaye ho


arsh

अजय कुमार said...

अच्छी लगी लकीरों की बातचीत

M VERMA said...

जो मरा था वो कभी जीया ही नही
वाह क्या सोच है
बहुत खूब

ओम आर्य said...

तकदीरो का खेल भी अजीब होता है .......रेखाये तो बस उसको आकार देती है ........खुबसूरत रचना!

शरद कोकास said...

वैसे तो मैं रेखाओं से भविष्य जानने में आस्था नहीं रखता क्योंकि भूकम्प जैसे प्राकतिक हादसों मे मर जाने वाले बच्चे,बूढ़े जवानों के हाथ मे छोटी बड़ी रेखाये होती है और रेखाओं का होना एक बायोलॉजिकल फैक्ट है खैर लेकिन इस मान्यता के आधार रेखाओं की बातचीत का यह विषय कविता के लिये बिलकुल नया विषय है । आपने प्रयास भी अच्छा किया है । आप मुक्त छन्द में ही लिखे , तुक मिलाने के चक्कर में भाव बिखर जाते हैं साथ ही भारीभरकम गद्य के शब्दों के स्थान पर कविता के शब्द चुने ,इसका शिल्प निखर जायेगा । शुभकामनायें।

दिगम्बर नासवा said...

सब कुछ हाथ की रेखाओं का ही तो खेल है .......... बहुत ही sundaer racha है ..........

Ambarish said...

aapki aakhir ki lines (jo mara tha.. se lekar ...yaadon mein tak) bahut pasand aayi mujhe, par kavita mein kahin kahin flow ka thoda sa abhav sa lag raha hai...

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया रचना बधाई . ...

निर्मला कपिला said...

अच्छा है हस्त रेखा विग्यान । शुभकामनायें

Divya Prakash said...

almost all the time you surprised me with your way of expression .
lakiron ke madhyam se aapne badi hi khubsurati se apni bat keh di ...
keep writing
Regards
Divya Prakash Dubey

rajiv said...

लकीरों की बातें सुन बोली उनकी सहेली
ऐ लकीरों तकदीर पर क्यों इतना इतराती
तुम्हारा क्या मतलब था गर ना होती हथेली

रश्मि प्रभा... said...

लकीर बोलते हैं, तकदीर की बातें और मस्तिष्क का विरोध.......लफ्ज़-लफ्ज़ कई बातों को
संजीदगी से कह गए हैं.....

Unknown said...

बहुत ही अच्छी रचना...........

कुछ शब्दों को शायद तकनीकी असुविधा के कारण आपने ग़लत छाप दिया है , हो सके तो सुधार लें..क्योंकि आपकी यह कविता अत्यन्त सौम्य और प्यारी रचना है..........

अभिनन्दन !

KK Yadav said...

कविता के माध्यम से लकीरों की बातें...
हार्दिक बधाई !!

SACCHAI said...

" bun ker alfaz sajayi aapne jo ye shandar rachana uske liye aapko bahut bahut badhai "

----eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

richa said...

amazing conversation and b'ful afterthought...
"अब मर कर जियेगा कुछ दिन,
कुछ रिश्तो में
ज़ुबानो में
यादों में"

Vandana Singh said...

waaaaw dear ..kamal kar diya tumne ....har baar kuch alag si thought tumhe khaan se aati hai yaar :) isliye tumhari new poetry ka wait rehta k kuch naya or alag sa padhne ko milega ..bahut sunder likha hai ..
keep it up ...best wishes

Sudhir (सुधीर) said...

अब मर कर जियेगा कुछ दिन,
कुछ रिश्तो में
ज़ुबानो में
यादों में

वाह क्या मोड़ देकर अभिव्यक्ति का समापन किया हैं आपने... साधू!!

BAD FAITH said...

जो मरा था वो कभी जीया ही नही.
सुन्दर अभिव्यक्ति.

प० राजेश कुमार शर्मा said...

यह सच कम लोग जानते है आपक शब्द आपकी कलम कि तरह सुन्दर है ---स्वामी सम्बुद्धानन्द’ का कथन उल्लेखनीय है - कि “धर्म का केवल एक ही अर्थ हो सकता है ‘सत्य’। क्योंकि यह सत्य ही है जिसने विश्व को साधा हुआ है। सत्य से ही यह जन्म लेता है, उसी में इसका सुख है तथा अन्त में उसी सत्य में इसका विलय हो जाता है।”http://bhragujyotish.blogspot.com

Rajat Narula said...

तकदीरो का खेल भी अजीब होता है .......रेखाये तो बस उसको आकार देती है .......

very sensible and innovative.... you are extremly talented...